________________
हि. (पुत्री) उत्पन्न होने पर शोक होता है, बड़ी होने पर चिन्ता बढ़ती
है, विवाह होने पर दण्ड मिलता है, इस प्रकार स्त्री का पिता हमेशा
दुःखी होता है। 12. प्रा. जं चिय खमइ समत्थो, धणवंतो जं न गम्विरो होइ ।
जं च सुविज्जो नमिरो, तिसु तेसु अलंकिया पुहवी ।।34।। सं. यदेव समर्थः क्षमते, धनवान् यन्न गर्ववान् भवति ।
यच्च सुविद्यो नमः, त्रिभिस्तैः पृथ्व्यलता ||34|| हि. जो व्यक्ति स्वयं समर्थ होते हुए भी सहन करता है, जो धनवान
होते हुए भी अभिमानी नहीं होता है, जो ज्ञानी होते हुए भी नम्र है,
इन तीनों द्वारा पृथ्वी सुशोभित है । 13. प्रा. का सत्ती तीए तस्स पुरओ ठाइउं ? |
सं. का शक्तिस्तस्यास्तस्य पुरतः स्थातुम् ? ।
हि. उसके आगे खड़े रहने के लिए उसकी क्या ताकत है ? | 14. प्रा. लज्जा चत्ता सीलं च खंडिअं, अजसघोसणा दिण्णा ।
जस्स कए पिअसहि ! सो चेअ जणो अजणो जाओ ।।35।। सं. लज्जा त्यक्ता, शीलं च खंडितम् , अयशोघोषणा दत्ता ।
प्रियसखि ! यस्य कृते स एव जनोऽजनो जातः ||35।। हि. हे प्रियसखि ! जिसके लिए लज्जा छोड़ी, शील खण्डित किया
और अपयश की घोषणा की, वही मनुष्य (अब) दुर्जन हुआ है । 15. प्रा. परिच्चइय पोरुसं, अपासिऊण निययकुलं, अगणिऊण वयणीअं,
अणालोइऊण आयइं परिचत्तं तेण दवलिंगं । सं. परित्यज्य पौरुषमदृष्ट्वा निजककुलमगणयित्वा ।
वचनीयमनालोच्याऽऽयतिं परित्यक्तं तेन द्रव्यलिङ्गम् ।। हि. पुरुषार्थ का त्याग करके, अपना कुल देखे बिना, निंदा की परवाह
किये बिना, भविष्य का विचार किये बिना उसके द्वारा साधुवेष का
त्याग किया गया। 16. प्रा. जंजिणेहिं पन्नत्तं तमेव सच्चं, इअ बुद्धी जस्स मणे निच्चलं तस्स
सम्मत्तं । सं. यज्जिनैः प्रज्ञप्तं तदेव सत्यमिति बुद्धिर्यस्य मनसि निश्चलं तस्य
सम्यक्त्वम् ।