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जाव पडिरूवे । सूत्रकृताङ्ग-द्वितीयश्रुतस्कन्धे, प्रथमाध्ययने-सूत्र-(1)
संस्कृत अनुवाद आनुपूर्वृत्थितानि, उच्छितानि, रुचिलानि, वर्णवन्ति, गन्धवन्ति, स्पर्शवन्ति, प्रासादितानि, दर्शनीयानि, अभिरूपाणि, प्रतिरूपाणि तस्या नु पुष्करिण्या बहुमध्यदेशभागे एक महत् पद्मवरपौण्डरीकमुक्तम् . आनुपूर्युत्थितमुच्छितं, रुचिलं , वर्णवद्, गन्धवद्, रसवत्, प्रासादितं यावत् प्रतिरूपम् ।
सर्वस्याश्च नु तस्याः पुष्करिण्यास्तत्र तत्र देशे देशे तस्मिंस्तस्मिन् बहूनि पद्मवरपौण्डरीकान्युक्तानि, आनुपूर्वृत्थितान्युच्छितानि, रुचिलानि यावत् प्रतिरूपाणि, सर्वस्याश्च तस्याः पुष्करिण्या बहुमध्यदेशभागे एकं महत् पद्मवरपौण्डरीकमुक्तम्, आनुपूर्युत्थितं यावत् प्रतिरूपम् ।।
. हिन्दी अनुवाद उत्तम कान्तिवाले, उत्तम रंग के, श्रेष्ठ गन्धवाले, शुभ स्पर्शवाले, प्रसन्नतादायक, देखने योग्य, सुन्दर, अतिशय रूपवान है, उस जलाशय के प्रायः मध्यभाग में एक बड़ा श्रेष्ठ श्वेत कमल है, जो रमणीय, रचनायुक्त, जल
और कीचड़ से ऊपर रहा हुआ उत्तम वर्ण, उत्तम गन्ध, उत्तम रस, प्रसन्नतादायक यावत् अतिशय रूपवान है।
- उस सम्पूर्ण जलाशय के उन-उन स्थानों में उत्तम श्वेत कमल प्रचुर मात्रा में हैं, जो विशेष रचनायुक्त, जल और कीचड़ से ऊपर रहे हुए, देदीप्यमान यावत् अतिशय रूपवान हैं; और उस पूरे जलाशय के मध्यभागमें एक विशाल सुन्दर कमल है, जो विशिष्ट रचनायुक्त यावत् मनोहर रूपवान है ।
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