Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 202
________________ (10) महेसरदत्तकहा प्राकृत तामलित्तीनयीते महेसरदत्तो सत्थवाहो । तस्स पिया समुद्दनामो वित्तसंचयसारक्खपरिवुड्ढिलोभाभिभूओ मओ, मायाबहुलो महिसी जाओ तम्मि चेव विसए । मायाविसेउवहिनियडिकुसला बहुला नाम चोक्खवाइणी पइसोगेण मया सुणिया जाया तम्मि चेव नयरे । महेसरदत्तस्स भारियागंगिला गुरुजणविरहीए घरे सच्छंदाइच्छिएणपुरिसेण सह कयसंकेचा पओसेत्तं उदिक्खमाणी चिट्ठइ । सो यतं पएसं साउहो उवगओ महेसरदत्तस्स चक्खुभागे पडिओ । तेण पुरिसेण अत्तसंरक्खणनिमित्तं महेसदत्तो तक्किओ विवाडेउं । (10) संस्कृत अनुवाद ताम्रलिप्तीनगर्यां महेश्वरदत्तः सार्थवाहः । तस्य पिता समुद्रनामा क्तिसञ्चय-संरक्षणपरिवृद्धिलोभाभिभूतो मृतः, मायाबहुलो महिषो जातस्तस्मिंश्चैव विषये । माताऽपि तस्योपधिनिकृति कुशला बहुला नाम्नी चोक्षवादिनी प्रतिशोकेन मृता शुनी जाता तस्मिंश्चैव नगरे । ___ महेश्वरदत्तस्य भार्या गङ्गिला गुरुजनविरहिते गृहे स्वच्छन्दा, इष्टेन पुरुषेण सह कृतसङ्केता प्रदोषे तमुदीक्षमाणा तिष्ठति । स च तं प्रदेशं सायुध उपगतो महेश्वरदत्तस्य चक्षुर्भागे पतितः । तेन पुरुषेणाऽऽत्मसंरक्षणनिमित्तं महेश्वरदत्तस्सतर्कितो विपातयितुम् । (10) हिन्दी अनुवाद ताम्रलिप्ती नगरी में महेश्वरदत्तनामक सार्थवाह था | धन के संग्रह, रक्षण और वृद्धि के लोभ से अभिभूत उसके समुद्रनामक पिता मर गए और अत्यंत मायावी वह उसी नगर (गाँव) में महिष (भैंसा) बना | माया-कपट करने में कुशल, शौचधर्म को माननेवाली उसकी माता पति के शोक से मृत्यु प्राप्तकर उसी नगरी में कुतिया हूई । महेश्वरदत्त की पत्नी गंगिला माता-पितारहित घर में स्वच्छंद बनी और मनोवांछित पुरुष के साथ संकेत करके सन्ध्या समय उसकी प्रतीक्षा करती है । वह पुरुष भी उसी स्थान पर शस्त्रसहित आया हुआ महेश्वरदत्त की नजर में आया । उस पुरुष ने स्वयं के बचाव हेतु महेश्वरदत्त को मारने का विचार किया । -१८३

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