Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 252
________________ गिरिनदीपूर इव वर्धमानः परिग्रहः धर्माऽऽरामक्षयं, क्षमाकमलिनीसंघातनिर्घातनम् ; मर्यादातटीपातनं , शुभमनोहंसस्य निर्वासनम् । लोभमहार्णवस्य वृद्धिं, सत्त्वानुकम्पाभुवः खननं सम्पादयति ||280।। हिन्दी अनुवाद क्या योग्य पति मिलेगा ? क्या उसका प्रेम संपादन करेगी ? क्या श्वसुर आदि को अपने गुणों के समूह से आनंदित करेगी ? क्या शील का बराबर पालन करेगी ? क्या निश्चय पुत्र को ही जन्म देगी ? इस प्रकार माता-पिता के घर कन्या साक्षात् चिन्ता की मूर्तिसमान है । (279) पर्वत की नदी में बाढ़ समान वृद्धिंगत परिग्रह धर्मरूपी बगीचे का नाश करता है, क्षमारूपी कमलिनी (कमल का गाछ) के समूह का उच्छेदक है, मर्यादारूपी किनारे को गिरानेवाला है, शुभ मनरूपी हंस को देशनिकाला करनेवाला है, लोभरूपी महासमुद्र को बढ़ानेवाला और जीवों की अनुकंपारूपी पृथ्वी को खोदनेवाला है । (280) प्राकृत 'हाकुंदिंदुसमुज्जलो कलुसिओ, तायस्स 'वंसोमए, बंधूणं मुहपंकएसु यहहा, 11दिन्नो 10मसीकुच्चओ। 12ही 13तेलुक्क14मकित्तिपंसुपसरे-16णुद्धलियं 15सव्वओ, 17धिद्धी ! 19भीमभवुब्भवाण 21भवणं, 2 दुक्खाण अप्पा 22कओ ।।281 ।। 'ऊसस-निसस-रहियं, 'गुरुणो सेसं वसे हवइ 'दव् । 'तेणाणुण्णा जुज्जइ, 10अण्णह 12दोसो 13भवे "तस्स ।।282।। नसा सहा, 'जत्थ न 'संति वुड्डा; 13वुड्डा 14न 12ते, जे "न"वयंतिधम्मं । 19धम्मो 20न 18सो. 15जत्थ य 17 नत्थि 16 सच्चं, 24सच्चं 25न 23तं, 21जं 22छलणाणुविद्धं ।।283।। संस्कृत अनुवाद हा मया कुन्देन्दुसमुज्ज्वलस्तातस्य वंशः कलुषितः; हहा ! बन्धूनां मुखपङ्कजेषु च मषीकूर्चको दत्तः । - २३३

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