Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 203
________________ प्राकृत तेण लहुहत्थयाए गाढप्रहारीकओ नाइदूर गंतूण पडिओ । चिंतेइ-अहो! अणायारस्स फलं पत्तो अहं मंदभागो । एवं च अप्पाणं निंदमाणो जायसंवेगो मतो गंगिलाए उयरे दारगो जाओ । संवच्छरजायओ च महेसरदत्तस्स पिओ पुत्तो ति । तम्मि यसमये पिउकिच्चे सो महिसोणेणकिणेऊण मारिओ । सिद्धाणिव वंजणाणि, पिउमंसाणि, दत्ताणिजणस्स । बितीयदिवसेतं मंसं मज्जंच आसाएमाणे पुत्तमुच्छंगे काऊण तीसे माउसुणिगाए मंसखंडाणि खिवइ । सा वि ताणि परितुट्ठा भक्खइ, साहु य मासखवणपारणए तं गिहमणुपविट्ठो, पस्सइ य महेसरदवं परमपीतिसपउत्तं तदवत्थं च ओहिणा आभोएऊण चिंतिअभणेणं संस्कृत अनुवाद तेन लघुहस्तकया गाढप्रहारीकृतो नातिदूरं गत्वा पतितः । चिन्तयतिअहो ! अनाचारस्य फलं प्राप्तोऽहं मन्दभागः । एवं चाऽऽत्मानं निन्दन जातसंवेगो मृतः, गङ्गिलाया उदरे दारको जातः । संवत्सरजातकश्च महेश्वरदत्तस्य प्रियः पुत्र इति । तस्मिश्च समये पितृकृत्ये च महिषस्तेन क्रीत्वा मारितः । सिद्धानि च व्यञ्जनानि पितृमांसानि, दत्तानि जनाय । द्वितीयदिवसे तं मांसं मद्यं चऽऽस्वादयन् पुत्रमुत्सङ्गे कृत्वा तस्यै मातृशुनिकायै मांसखण्डानि क्षिपति । साऽपि तानि परितुष्टा भक्षयति, साधुश्च मासक्षपणपारणके तद् गृहमनुप्रविष्ट : पश्यति च महेश्वरदत्तं परमप्रीतिप्रयुक्तां तदवस्थां चाऽवधिनाऽऽभोग्य चिन्तितमनेन हिन्दी अनुवाद उसके द्वारा हल्के हाथ से गाढ़ प्रहार किया हुआ (जार पुरुष) थोड़ी दूर जाकर गिरा और विचार करता है - अहो ! मंदभागी ऐसे मैंने अनाचार का फल पाया । इस प्रकार अपनी निंदा करता संवेगप्राप्त वह मर गया और गंगिला की कुक्षि में पुत्र के रूप में आया । एक वर्ष के बाद महेश्वरदत्त के पिता पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए। उस समय पिता के श्राद्ध हेतु उस महिष को खरीदकर मारा । पिता के मांस का शाक आदि बनाया और लोगों को परोसा (दिया) । दूसरे दिन वह (महेश्वरदत्त) मांस और दारु का आस्वादन करता पुत्र को गोद में लेकर कुतिया बनी माता को मांस के टुकड़े डालता है । वह कुतिया भी वे टुकड़े संतोषपूर्वक खाती है और उसी समय मासक्षमण के पारनेवाले साधु भगवन्त उस घर में -१८४

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