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से वंदित हैं अतः दूसरों से पर्याप्त इनका (प्रभु का) ही विनय करूँ । अतः अवसर देखकर तलवार, ढाल हाथ में लेकर प्रभु के चरणों में गिरकर = झुककर विनंति करने लगा । भगवन् ! आप अनुमति प्रदान करो । मैं आपकी सेवा करूँ । प्रभु ने कहा, हे भद्र ! तलवार आदि हाथ में रखकर मेरी सेवा नहीं होती है, परन्तु रजोहरण, मुखवस्त्रिका = मुहपत्ति हाथ में रखकर जैसे ये अन्य सेवा करते हैं | उसने कहा, जैसी आप आज्ञा करोगे वैसे सेवा करूंगा | तत्पश्चात् "योग्य है' इसलिए प्रभु ने संयम प्रदान किया और सद्गति पाया । इस प्रकार विनयशील धर्म के योग्य बनता है ।
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