Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 244
________________ प्राकृत 'विणए सिस्सपरिक्खा, 'सुहडपरिक्खा यहोइ संगामे । वसणे 'मित्तपरिक्खा, 'दाणपरिक्खा यदुक्काले ।।250।। 'आरंभे नत्थि दया, 'महिलासंगेण नासए बंभं । 'संकाए सम्मत्तं, 10पव्वज्जा अत्थगहणेण ।।251 ।। दीसइ 'विविहच्छरिअं, 'जाणिज्जइ सुअणदुज्जणविसेसो । 5अप्पाणं कलिज्जइ, 'हिंडिज्जइ 'तेण पुहवीए ।।252।। सत्थं 'हिअयपविटुं, मारइ 'जणे पसिद्धमिणं । 'तं पि गुरुणा पउत्तं, 1 जीवावइ 12पिच्छ "अच्छरिअं ।।253।। संस्कृत अनुवाद विनये शिष्यपरीक्षा, सङ्ग्रामे च सुभटपरीक्षा भवति । व्यसने मित्रपरीक्षा, दुष्काले च दानपरीक्षा ||250|| आरम्भे दया नाऽस्ति, महिलासङ्गेन ब्रह्म नश्यति । शङ्कया सम्यक्त्वम्, अर्थग्रहणेन प्रव्रज्या ||251।। विविधाऽऽश्चर्यं दृश्यते , सुजनदुर्जनविशेषो ज्ञायते । आत्मा कल्यते, तेन पृथिव्यां हिण्डयते ।।252।। हृदयप्रविष्टं शस्त्रं मार्यते, इदं जने प्रसिद्धम् । तदपि गुरुणा प्रयुक्तं जीवाययत्याऽऽश्चर्यं पश्य ।।253।। हिन्दी अनुवाद विनय में शिष्य की परीक्षा, युद्ध में सैनिकों की परीक्षा, संकट में मित्र की परीक्षा और दुष्काल में दान की परीक्षा होती है । (250) आरम्भ-समारम्भ के कार्य में दया नहीं रहती है, स्त्री के संपर्क से ब्रह्मचर्य नष्ट होता है, शंका से सम्यक्त्व और धन ग्रहण करने से संयम का नाश होता है । (251) __अनेक प्रकार के आश्चर्य देखने को मिले, सज्जन और दुर्जन का भेद ज्ञात हो, आत्मा का बोध हो अथवा स्वयं कलाओं में कुशल बने, अतः दुनिया (जगत्) में घूमना चाहिए । (252) हृदय में प्रविष्ट शस्त्र मारता है यह जगत् प्रसिद्ध है, परन्तु गुरु भगवंत द्वारा प्रयुक्त वही शस्त्र जीवन देता है । (253) -२२५

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