Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 245
________________ प्राकृत 'जणणी 2 जम्मुप्पत्ती, पच्छिमनिद्दा 'सुभासिआ गुट्ठी । मणईलैं 'माणुस्सं, पंच वि दुक्खेहिं 10मुच्चंति ।।254।। 2जं 'अवसरे 'न हूअं, दाणं "विणओ 'सुभासि वयणं । पच्छा 10गयकालेणं, "अवसरहिएण किं 12तेण ? ||255।। 'उवभुंजिउंन याणइ, रिद्धिं पत्तो वि 'पुण्णपरिहीणो | 'विमले वि जले 'तिसिओ, "जीहाए 10मंडलो लिहइ ।।256।। आकड्डिउण नीरं, रेवा रयणायरस्स अप्पेइ । 'न हु गच्छेइ मरुदेसे, 'सच्चं 10भरिआ "भरिज्जंति ||257 ।। संस्कृत अनुवाद जननी, जन्मोत्पत्तिः, पश्चिमनिद्रा सुभाषिता गोष्ठी । मनइष्टं मानुष्यं, पञ्चापि दुःखैर्मुच्यन्ते ||254|| अवसरे यद् दानं, विनयः, सुभाषितं वचनं न भूतम् । पश्चाद् गतकालेन अवसररहितेन तेन किम् ? ||255।। पुण्यपरिहीण ऋद्धिं प्राप्तोऽप्युपभोक्तुं न जानाति । विमलेऽपि जले तृषितो मण्डलो जीह्वया लिखति ||256।। रेवा नीरमाकृष्य रत्नाकरस्याऽर्पयति । मरुदेशे न खलु गच्छति, सत्यं भृता भियन्ते ।।257।। हिन्दी अनुवाद माता, जन्मभूमि, पश्चिमरात्रि की निद्रा, सुभाषितों की गोष्ठी (चर्चा) और मनपसन्द मनुष्य ये पाँच दुःखपूर्वक छूटते हैं । (254) समय (= अवसर) आने पर जो दान दिया न जाए, विनय किया न जाए, सुभाषित वचन बोले न जाए, तो समय बीतने पर, अवसररहित उनसे = (दान, विनय, सुभाषित वचन से) क्या (लाभ) ? (255) पुण्यहीन आत्मा समृद्धि प्राप्त करने पर भी उसका उपभोग करना नहीं जानता है, निर्मल पानी में भी रहा तृषातुर कुत्ता जीभ से ही (पानी) चाटता है | (256) नर्मदा नदी पानी को वहन करके समुद्र को देती है, परन्तु मरुदेश को नहीं देती है, सचमुच भरे हुए ही भर जाते हैं । (257) -२२६

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