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'दुक्खाण 'एउ दुक्खं, 'गुरुआण जणाण हिअयमॉमि। . 'जंपिपरो पत्थिज्जइ, 1जंपि य"परपत्थणाभंगो ।।263।।
संस्कृत अनुवाद क्वाऽपि जलं छाया न, कुत्राऽपि छाया शीतलं सलिलं न | पथिक ! जलछायासंयुक्तं , तत् सरोवरं विरलम् ।।261 ।।
कुत्राऽपि तपः तत्त्वं न, क्वाऽपि तत्त्वं, शुद्धचारित्रं न ।
तपस्तत्त्वचरणसहिता मुनयोऽपि च संसारे स्तोकाः ।।262।। गुरुकाणां जनानां हृदयमध्ये दुःखानामेतद् दुःखम् । यदपि पर: प्रार्थ्यते, यदपि च परप्रार्थनाभङ्गः ।।263।।
हिन्दी अनुवाद कहीं पानी होता है परन्तु छाया नहीं होती है, कहीं छाया होती है परन्तु शीतल जल नहीं होता है, हे मुसाफिर ! पानी और छाया दोनों से सुशोभित सरोवर दुर्लभ है । (261)
किसी के पास तप होता है परन्तु तत्त्वज्ञान नहीं होता है, किसी के पास तत्त्वज्ञान होता है परन्तु निर्मलतर संयम नहीं होता है; तप, तत्त्वज्ञान और संयम से सुशोभित साधु भी संसार में अल्प होते हैं । (262)
___ महान पुरुषों के हृदय में यही सबसे बड़ा दुःख है, एक तो-दूसरों के पास मांगना और दूसरा-अन्य की प्रार्थना का भंग करना । (263)
प्राकृत अकिं किं न कयं, को को 'नपत्थिओ, 'कह कह 11-12नामिअंसीसं? । 'दुब्भरउअरस्स कए, 13किं 14-15कयं किं 17नकायव्वं ।।264।।
जीवंति 'खग्गछिन्ना, पव्वयपडिआवि के वि'जीवंति । 'जीवंति उदहिपडिआ, 'चट्टच्छिन्नान "जीवंति ।।265।। जं अज्जिअं 'चरित्तं, 'देसूणाए अपुव्वकोडीए । तं पि'कसाइयमित्तो, 1 हारेइ नरो मुहुत्तेण ।।266।। तं नत्थि रं तं नत्थि, राउलंदेउलं पि'तं नत्थि । 1 जत्थ 'अकारणकुविआ, 12दो तिन्नि 4खला 15न 16दीसति ।।267।।
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