Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 243
________________ प्राकृत 'संतगुणकित्तणेण वि, 'पुरिसा 'लज्जंति 'जे 2 महासत्ता । 'इअरा 7 अप्पस्स 'पसंसणेण, हियए 10 11 मायंति ।। 246 ।। 'संतेहिं 2 असंतेहिं अ, परस्स 'किं 'जंपिएहिं 'दोसेहिं । 7 अच्छो 'जसो 'न 10 लब्भइ, 11 सो वि 12 अमित्तो कओ "होइ | | 247 || 'विहलं ±जो 'अवलंबइ, 'आवइपडिअं च 'जो ' समुद्धरई । 7सरणागयं च 'रक्खइ, "तिसु तेसु 12 अलंकिआ "पुहवी ।।248।। 'सह 2 जागरण 'सह 'सुआणाणं, 'सह 'हरिससोअवंताणं । श्रनयणाणं व 'धन्नाणं, 'आजम्मं "निच्चलं 11 पिम्मं । । 249 ।। संस्कृत अनुवाद ये महासत्त्वाः पुरुषाः सद्गुणकीर्तनेनाऽपि लज्जन्ते । इतरे आत्मनः प्रशंसनेनाऽपि हृदये न मान्ति ||246 || परस्य सद्भिरसद्भिश्च दोषैर्जल्पितैः किम् ? अच्छं यशो न लभ्यते, सोऽप्यमित्रः कृतो भवति ||247 || यो विह्वलमवलम्बते, यश्चाऽऽपतितं समुद्धरति । शरणाऽऽगतं च रक्षति, तैस्त्रिभिः पृथ्व्यलङ्कृता ॥ 248 || सह जाग्रतोः सह स्वपतो: सह हर्षशोकवतो: । धन्ययोः नयनयोरिव आजन्म निश्चलं प्रेम ||249|| 1 हिन्दी अनुवाद सात्त्विक पुरुष विद्यमान गुणों की भी प्रशंसा करने में शरमाते हैं, जब कि अन्य लोग अपनी प्रशंसा करते हृदय में फूले नहीं समाते हैं । (246) दूसरों के विद्यमान या अविद्यमान दोष कहने से क्या लाभ ? इससे यश नहीं मिलता है और वह व्यक्ति भी दुश्मन बन जाता है । (247) जो संकट में आये हुए को आश्रय देता है, जो आपत्ति में आये हुए का उद्धार करता है और शरणागत का रक्षण करता है, इन तीनों द्वारा पृथ्वी शोभा देती है । (248) साथ में जागते, साथ में सोते, साथ में ही आनंद और दुःख व्यक्त करते कुछ धन्य पुरुषों का ही दो नेत्रों की तरह आजीवन निश्चल प्रेम होता है । (249) २२४

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