Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 242
________________ प्राकृत कत्थइ जीवो बलवं, 'कत्थइ 'कम्माइं हुंति बलिआई। जीवस्स य'कम्मस्स य, 1"पुव्वनिबद्धाइं "वेराई ।।242।। देवस्स मत्थए पाडिऊण, सव्वं सहति 'कापुरिसा । 'देवो वि ताण संकइ, 1"जेसिंतेओ 12परिप्फुरइ ।।243।। जीअंमरणेण 'समं, 'उप्पज्जइ 'जुव्वणं सह 'जराए । रिद्धी विणाससहिआ, 1 हरिसविसाओ 110 12कायव्वो ।।244।। 'अवगणइ दोसलक्खं, इक्कं मंनेइज'कयं सुकयं । सयणो 'हंससहावो, "पिअइपयं वज्जए 12नीरं ।।245।। संस्कृत अनुवाद क्वापि जीवो बलवान्, कुत्राऽपि कर्माणि बलवन्ति भवन्ति । जीवस्य च कर्मणश्च , पूर्वनिबद्धानि वैराणि ।।242।। देवस्य मस्तके पतित्वा, कापुरुषाः सर्वं सहन्ते । देवोऽपि तेषां शङ्कते, येषां तेजः परिस्फुरति ।।243।। जीवितं मरणेन समम् , यौवनं जरया सहोत्पद्यते । ऋद्धिविनाशसहिता, हर्षविषादौ न कर्तव्यौ ।।244।। हंसस्वभावः सज्जनः दोषलक्षमवगणयति, यत् सुकृतं कृतम्, (तद्) एकं मन्यते, पयः पिबति नीरं वर्जयति ।।245।। हिन्दी अनुवाद कभी आत्मा बलवान होती है, तो कभी कर्म बलवान होता है, सचमुच जीव और कर्म की पूर्वबद्ध वैर जैसी परिस्थिति है । (242) देवता को लक्ष्य बनाकर कायर पुरुष सब सहन करते हैं, परन्तु देव भी उससे सतर्क रहते हैं, जिसका तेज स्फुरायमान है । (243) __ जीवन मृत्यु के साथ और जवानी वृद्धावस्था के साथ ही उत्पन्न होती हैं, समृद्धि भी विनाशसहित है अतः इसमें आनंद या खेद नहीं करना चाहिए । (244) हंस जैसे स्वभाववाला सज्जन, लाखों दोषों की अवगणना करता है, लेकिन जो कोई सत्कार्य किया हो, उस एक को ही देखता है, जैसे हंस दूध पीता है और पानी को छोड़ देता है । (245) 7 -२२३

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