Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 227
________________ जो वपन करते हैं, वही प्रभूततर (अत्यधिक) मिलता है, इसमें संदेह नहीं है, सचमुच कोद्रव वपन करने पर, कोद्रव ही मिलते हैं । (192) जो जीवों का नाश नहीं करता है, वह उन जीवों के जीवित सुख और वैभव का भी नाश नहीं करता है, अतः कोई भी उसके जीवितादि का परलोक में नाश नहीं करता है । (193) अतः भद्र ऐसे मेरे द्वारा पूर्वभव में निश्चय अनुकंपा की गई होगी इसलिए संकटों को दूर करके यह राज्यलक्ष्मी मुझे प्राप्त हुई है । (194) प्राकृत तासंपइ जीवदया, जावज्जीवं 'मए "विहेयव्वा । 'मंसं न भक्खियव्वं, "परिहरियव्वा य पारद्धी ।।195।। 'जो देवयाण पुरओ,'कीरइ आरुग्गसंतिकम्मकए । __ पसुमहिसाणविणासो, 10निवारियव्वो "मए सो वि ।।196।। बालो विमुणइ एवं, 'जीववहेणं'लब्भइन 'सग्गो। किं पन्नगमुहकुहराओ, "होइ 10पीऊसरसवुट्ठी ।।197।। 'तो गुरुणा वागरियं, 'नरिंद ! 'तुह 'धम्मबंधुरा बुद्धी । सव्वुत्तमो विवेगो, 10अणुत्तरं तत्तदंसित्तं ।।198।। संस्कृत अनुवाद ततः सम्प्रति यावज्जीवं जीवदया मया विधातव्या । मांसं न भक्षितव्यं, पापर्द्धिश्च परिहर्तव्या ||195।। यो देवतानां पुरत आरोग्यशान्तिकर्मकृते , पशुमहिषाणां विनाशः क्रियते, सोऽपि मया निवारयितव्यः ||196।। बालोऽप्येवं जानाति-जीववधेन स्वर्गो न लभ्यते । किं पन्नगमुखकुहरात् पीयूषरसवृष्टिर्भवति ? ||197।। ततो गुरुणा व्याकृतम्, नरेन्द्र । तव बुद्धिर्धर्मबन्धुरा । । सर्वोत्तमो विवेकः, अनुत्तरं तत्त्वदर्शित्वम् ||198।। हिन्दी अनुवाद अतः अब मुझे यावज्जीव जीवदया का पालन करना, मांस नहीं खाना और शिकार का भी त्याग करना चाहिए (अर्थात् त्याग करता हूँ) । (195) देवों के सम्मुख आरोग्य और शांतिकार्य हेतु जो पशुओं और महिषों (भैंसों) का वध किया जाता है, वह भी मुझे अवश्य रोकना है । (196) २०८

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