________________
(17) पाइअसुभासिअपज्जाणि
प्राकृत अन वि 'मुंडिएण समणो, न ओंकारेण 'बम्भणो । 'न मुणी 'रण्णवासेण, "कुसचीरेण 12न "तावसो ||207||
'समयाए 'समणो होइ, 'बम्भचेरेण बंभणो ।
नाणेण य'मुणी होइ, 'तवेणं 'होइ तावसो ||208 ।। कम्मुणा बम्भणो होइ, 'कम्मुणा होइ खत्तिओ । वइसो 'कम्मुणा होइ, "सुद्दो हवइ कम्मुणा ||209 ।।
धम्मो- (धर्मः) जत्थ य विसयविरागो, कसायचाओ 'गुणेसु अणुराओ | किरियासु 'अप्पमाओ, 'सो धम्मो "सिवसुहोवाओ | 210।। (17) प्राकृतसुभाषितपद्यानि
संस्कृत अनुवाद मुण्डितेन श्रमणो नाऽपि, ओङ्कारेण ब्राह्मणो न ।' अरण्यवासेन मुनिर्न, कुशचीरेण तापसो न ||207।।
समतया श्रमणो भवति, ब्रह्मचर्येण ब्राह्मण: ।
ज्ञानेन च मुनिर्भवति, तपसा तापसो भवति ।।208।। कर्मणा ब्राह्मणो भवति, कर्मणा क्षत्रियो भवति । कर्मणा वैश्यो भवति, कर्मणा शूद्रो भवति ||209।।
. यत्र च विषयविरागः, कषायत्यागो गुणेष्वनुरागः । क्रियास्वप्रमादः, स धर्म: शिवसुखोपायः ||21011
हिन्दी अनुवाद मुंडन कराने से साधु नहीं बना जाता है, ओंकार के रटण से ब्राह्मण नहीं बना जाता है, जंगल में रहने मात्र से मुनि नहीं बना जाता है और घास के वस्त्र धारण करने से तापस नहीं बना जाता है । (207)
समता धारण करने से साधु बना जाता है, ब्रह्मचर्य के पालन से ब्राह्मण बनते हैं, ज्ञान से मुनि बनते हैं और तपश्चर्या से तापस बनते हैं । (208)
२१२