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कर्मों से ब्राह्मण होते हैं, कर्म से ही क्षत्रिय बनते हैं, कर्म से ही वैश्य होते हैं और कर्म से ही शूद्र होते हैं (मात्र जन्म से नहीं) । (209)
जहाँ विषयों के प्रति विरक्ति है, कषायों का त्याग है, गुणों के प्रति अनुराग है और क्रिया में अप्रमत्तभाव है वह धर्म ही मोक्षसुख का कारण है । (210)
प्राकृत जाएण 'जीवलोगे, 'दो चेव नरेण सिक्खियव्वाइं । 'कम्मेण जेण जीवइ, 'जेण "मओ "सुग्गइं 12जाइ ।।211 ।।
'धम्मेण कुलप्पसूई, धम्मेण य 'दिव्वरूवसंपत्ती ।
5धम्मेण धणसमिद्धी, 'धम्मेण सवित्थरा कीत्ती ।।212।। मा सुअह 'जग्गिअव्वे, 'पलाइअव्वंमि'कीसवीसमह । 1°तिन्नि "जणा 12अणुलग्गा, 'रोगो अजा यमच्चू अ ।।213।।
'सग्गो ताण घरंगणे सहयरा, सव्वा "सुहा 12संपया । 13सोहग्गाइगुणावली 16विरयए 14सव्वंगमालिंगणं ।। 17संसारो न दुरुत्तरो 2 सिवसुहं, 22पत्तं 2 करंभोरुहे। 'जे सम्म जिणधम्मकम्मकरणे, वटुंति उद्धारया ।।214।।
. संस्कृत अनुवाद जीवलोके जातेन नरेण द्वे चैव शिक्षितव्ये । येन कर्मणा जीवति, येन मृतः सुगतिं याति ।।211 ।।
धर्मेण कुलप्रसूतिः, धर्मेण च दिव्यरूपसम्प्राप्तिः ।
धर्मेण धनसमृद्धिः, धर्मेण सविस्तरा कीर्तिः ।।212।। जागरितव्ये मा स्वपित, पलायितव्ये कस्माद् विश्राम्यत ? | रोगो जरा मृत्युश्च-त्रयो जना अनुलग्नाः ||213||
ये उद्धारका : जिनधर्मकर्मकरणे सम्यग् वर्तन्ते, तेषां स्वर्गो गृहाङ्गणे, सर्वे सहचराः, शुभाः सम्पदः । सौभाग्यादिगुणावलिः सर्वाङ्गमालिङ्गनं विरचयति; संसारो दुरुत्तरो न, शिवसुखं कराम्भोरुहे प्राप्तम् ।।214।।
हिन्दी अनुवाद जगत् में जन्मे हुए मनुष्य को दो बात सीखनेलायक है, एक = स्वयं कर्म से जीता है और दूसरी बात - कर्म के अनुसार सद्गति में जाता है । (211)
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