________________
में आयी लक्ष्मी दासी की तरह उनका घर नहीं छोड़ती है और सौभाग्य आदि गुण भी मानों रस्सी से बंधेन हों, उस तरह उनके शरीर को छोड़ते नहीं हैं । (215)
व्यापार का फल वैभव है और वैभव का फल सुपात्रदान है, उसके= सुपात्रदान बिना व्यापार और वैभव दोनों दुर्गति के कारण स्वरूप हैं । (216)
लच्छी-प्राकृत विगुणमवि गुणड्ड, 'रूवहीणं पिरम्म, 1"जडमवि 12मइमंतं 13मंदसत्तं पि4सूरं । 15अकुलमविकुलीणं'तं"पयंपंतिलोया, 'नवकमलदलच्छी जं 'पलोएइ लच्छी ।।217।।
'जाई रूवं विज्जा, “तिण्णि वि 'निवडंतु कंदरे विवरे । अत्थु पच्चिअपरिवड्ढउ, "जेण 12गुणा 13पायडा 14हुंति ।।218।।
सीलं अलसा होइ 'अकज्जे, 'पाणिवहे पंगुला 'सया 'होइ । परतत्तिसु बहिरा, जच्चंघा 1 प्रकलत्तेसु ।।219।।
. लक्ष्मी:संस्कृत अनुवाद नवकमलदलाक्षी लक्ष्मीर्यं प्रलोकयति , तं लोका विग्णमपि गुणाढ्यं , रूपहीनमपि रम्यं , जडमपि मतिमन्तं, मन्दसत्त्वमपि शूरं, अकुलमपि कुलीनं प्रजल्पन्ति ||217।।
जाती रूपं विद्यास्त्रीण्यपि कन्दरे विवरे निपतन्तु । अर्थ एव परिवर्धताम् , येन गुणाः प्रकटा भवन्ति ।।218।।
शीलम् अकार्येऽलसा भवन्ति, प्राणिवधे सदा पङ्गुला भवन्ति । परनिन्दासु बधिराः, परकलत्रेषु जात्यन्धाः (भवन्तु) 11219।।
हिन्दी अनुवाद नये कमलदलसमान नेत्रोंवाली लक्ष्मी जिस व्यक्ति पर नजर करती है, ऐसे निर्गुणी (व्यक्ति) को भी लोग गुणवान, कुरूपको भी रूपवान = रमणीय, मूर्ख को भी बुद्धिशाली, मंद सत्त्वशाली को भी शूरवीर और नीचकुल में उत्पन्न व्यक्ति को भी उच्च कुलवाला कहते हैं । (217)
-२१५