Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 233
________________ धर्म से उत्तम कुल में जन्म होता है, धर्म से ही अनुपम रूप की प्राप्ति होती है, धर्म से धन की समृद्धि मिलती है और धर्म से ही कीर्ति फैलती है । (212) जागने योग्य स्थान में तुम सोते न रहो और चलने योग्य स्थान में क्यों बैठे हो ? क्योंकि व्याधि, वृद्धावस्था और मृत्यु ये तीनों तुम्हारा पीछा कर रहे हैं • 1 (213) ___ जो आत्मिक उद्धार करनेवाले जिनेश्वर के धर्मकार्य करने में अच्छी तरह प्रयत्नशील होते हैं, स्वर्ग उनके गृहांगण में ही है, हरतरह की सुखसंपत्ति सहचरी है, सौभाग्य आदि गुणों की परंपरा = श्रेणी उनके संपूर्ण शरीर में आलिंगन करती है, संसार से पार उतरना उनके लिए दुष्कर नहीं है और मोक्षसुख भी उनके करकमलों में ही है । (214) दाणं प्राकृत 12नो तेसिं 1 कुवियं व दुक्खमखिलं, 13आलोयए"सम्मुहं, 19नो 20मिल्लेइ 18घरं 14कमंकवडिया, 16दासिव्व "तेसिंसिरी । 20सोहग्गाइगुणा 25चयंति 24-21गुणा-ऽऽबद्धव्व 22तेसिं23तणुं, 'जे दाणंमि समीहियत्थजणणे, कुव्वंति 'जत्तंजणा ।।215।। 'ववसायफलं विहवो, विहवस्स 'फलं सुपत्तविणिओगो । तयभावे 'ववसाओ, विहवो वि अदुग्गइनिमित्तं ।।216।। __ दानम् संस्कृत अनुवाद ये जनाः समीहितार्थजनने दाने यत्नं कुर्वन्ति, अखिलं दुःखं तेषां सम्मुखं कुपितमिव नाऽऽलोकते । क्रमाङ्कपतिता श्री सीव तेषां गृहं न मेलयति, सौभाग्यादिगुणा गुणाऽऽबद्धा इव तेषां तनुं न त्यजन्ति ।।215।। व्यवसायफलं विभवः, विभवस्य फलं सुपात्रविनियोगः । तदभावे व्यवसायो विभवोऽपि च दुर्गतिनिमित्तम् ।।216।। हिन्दी अनुवाद जो लोग मनोवांछित पदार्थों को देनेवाला दान देने में प्रयत्न करते हैं, उनके सामने सभी दुःख, क्रोधित व्यक्ति की तरह देखते भी नहीं है, चरणकमल २१४

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