Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 205
________________ (11) गामेयगोदाहरणं प्राकृत एगम्मि नगरे एगा महिला, सा भत्तारे मए कट्ठाईणि विता विक्कीयाइणि, धिच्छामो त्ति ता अजीवमाणी खुड्डगं पुत्तं घेत्तुंगामं गया, सो दारओ वढ्तो माय पुच्छइ-कहिं मम पिया ? तीए सिटुं जहा मओ इति, तओ सो पुणो पुच्छइ-केम पगारेण सो जीवियाइओ? सा भणइ ओलग्गाए, तो खाइं अहंपि ओलग्गामि, सहा भणइ-न जाणिहिसि ओलग्गिउं, तओ पुच्छइ कहं ओलग्गिज्जइ? भणिओविणयंकरेज्जासि, केरिसोविणओ? भणइ जोक्कारो कायव्वो, नीयं चंकमियवं, छंदाणुवत्तिणा होयव्वं, तओ सो नगरं पहाविओ, संस्कृत अनुवाद एकस्मिन् नगरे एका महिला सा भर्तरि मृते काष्ठादीन्यपि सा विक्रीतवती, गर्हितास्म इति साऽजीवन्ती क्षुल्लकं पुत्रं गृहीत्वा ग्रामं गता, स दारको वर्द्धमानो मातरं पृच्छति-क्व मम पिता ? तया शिष्टं यथा मृत इति, ततः स पुनः पृच्छति-केन प्रकारेण स जीविकायितः ? सा भणति-अवलगया, ततः खल्वहमप्यबलगामि, सा भणति-न जानास्यवलगितम्, ततः पृच्छति कथमवलग्यते ? भणितः- विनयं कुर्याः, कीदृशो विनय: ? भणति-जयकार: कर्तव्यः, नीचं चक्रमितव्यम्, छन्दानुवर्तिना भवितव्यम् ततः स नगरं प्रधावितः, हिन्दी अनुवाद एक नगर में एक स्त्री रहती थी, वह पति के मरने पर लकड़ियाँ आदि बेचती थी, हम निन्दापात्र बनेंगे इसलिए वह आजीविका हेतु अनिच्छा से छोटे बालक को लेकर गाँव में गई, वह पुत्र बड़ा होने पर माता को पूछता है-मेरे पिता कहाँ हैं ?, उसने जिस प्रकार पति की मृत्यु हुई वह सब बताया । उसके बाद वह पुनः पूछता है-वे (पिताजी) किस प्रकार आजीविका चलाते थे ?, वह (माता) कहती है-दूसरों की सेवा करके, तो मैं भी सेवा करूंगा; वह कहती है-तू सेवा करना नहीं जानता है । उसके बाद वह (पुत्र) पूछता है-सेवा कैसे की जाती है ?, जवाब-विनय करना चाहिए । विनय कैसे होता है ? वह बताती है - 'जय जय' इस प्रकार बोलना, नीचे देखकर चलना चाहिए और अनुकूल वर्तन करना, उसके बाद वह नगर तरफ गया । १८६

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