Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 214
________________ प्राकृत मम ताए समं संजोगो होज्जा? । 'न याणामुत्ति भणित्ता गओ । सो य सागरचंदोतं सोउं न वि आसणे, न विसयणे, धिइं लहइ । तंदारियं फलए पासंतो, नामंच गिण्हतो अच्छइ । नारओ वि कमलामेलाए अंतियं गओ । ताए पुच्छिओकिंचि अच्छेरयं दिटुं? । नारओ भणइ-दुवेदिट्ठाणि, रूवेणसागरचंदो, विरूवत्तणेण धणदेवो । तओ सागरचंदे मुच्छिया, धणदेवे विरत्ता । नारएण आसासिआ । तेण गंतुं सागरचंदस्स आइक्खियं, जहा ‘इच्छइ'त्ति । ततो यसागरचंदस्समाया, अन्ने य कुमारा अद्दन्ना, मरति नूणं सागचंदो । संबो आगओ जाव पिच्छइ सागरचंदं विलवमाणं । ताहे अणेण पच्छओ धाइऊण अच्छीणी दोहि वि हत्थेहिं छाइयाणि । सागरचंदेण भणियं कमलामेले ! । संबेण भणियं-नाहं __ संस्कृत अनुवाद स च सागरचन्द्रस्तच्छ्रुत्वा नाऽप्यासने, नाऽपि शयने धृतिं लभते । तां दारिकां फलके पश्यन् , नाम च गृह्णन् आस्ते । नारदोऽपि कमलामेलाया अन्तिकं गतः । तया पृष्ट:-किञ्चिदाश्चर्यं दृष्टम् ? | नारदो भणति-द्वे दृष्टे, रूपेण सागरचन्द्रः, विरूपत्वेन धनदेवः । ततः सागरचन्द्रे मूर्च्छिता, धनदेवे विरक्ता । नारदेनाऽऽश्वस्ता । तेन गत्वा सागरचन्द्रायाऽऽख्यातम्, यथा 'इच्छति' इति । ततश्च सागरचन्द्रस्य माता, अन्ये च कुमारा: खिन्नाः, म्रियते नूनं सागरचन्द्रः । शाम्ब आगतो यावत् प्रेक्षते सागरचन्द्रं विलपमानम् । तदाऽनेन पश्चात्तो धावित्वाऽक्षिणी द्वाभ्यामपि हस्ताभ्यां छादिते । सागरचन्द्रेण भणितं कमलामेले ! । शाम्बेन हिन्दी अनुवाद वह मैं नहीं जानता हूँ, इस प्रकार कहकर चले गये । वह सागरचन्द्र इस बात को सुनकर न तो आसन पर, न पलंग पर शांतिपूर्वक रहता है । उस स्त्री को चित्रपट में देखता और नाम लेते बैठा रहता है । नारद भी कमलामेला के पास गया । उसने (कमलामेला ने) पूछा - कुछ आश्चर्य देखा ? नारद कहता है - दो आश्चर्य देखे, एक रूप में सागरचन्द्र और दूसरा कुरूप में धनदेव । इससे वह सागरचन्द्र पर मोहित हुई और धनदेव पर रागरहित बनी । नारद ने आश्वासन दिया । उसने (नारद ने) जाकर सागरचन्द्र को कहा, 'वह भी चाहती है' इस प्रकार (कहा) । अतः सागरचन्द्र की माता और दूसरे कुमार व्याकुल बने, सचमुच १९५

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