Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 217
________________ हिन्दी अनुवाद नारद को पूछने पर बताते हैं - रैवताचल उद्यान में किसी विद्याधर द्वारा अपहरण की गई देखी है । उसके बाद सैन्य और वाहनोंसहित कृष्ण महाराजा निकले । शांब भी विद्याधर का रूप करके युद्ध करने लगा । समुद्रविजय आदि सभी दशाह राजा पराजित हुए । उसके बाद कृष्ण के साथ युद्ध हुआ । जब उसने जाना कि पिता 'क्रोधित हुए हैं' तब उनके चरणों में गिरा | कृष्ण ने तिरस्कार किया । इसलिए शांब ने कहा- इसे (कमलामेला को) हमने गवाक्ष में से स्वयं गिरते देखा है, तत्पश्चात् कृष्ण ने उग्रसेन को वापिस भेजा, बाद में ये दोनों भोगों को भुगतते रहते हैं | एक बार अरिष्ट नेमिनाथ प्रभु समवसरण में पधारे । तब सागरचन्द्र और कमलामेला ने प्रभु के पास धर्म सुनकर ग्रहण किये हुए अणुव्रतों का संक्षेप किया । प्राकृत व्वयाणि संवुत्ताणि । तओ सागरचंदो अट्ठमी-चउद्दसीसुसुन्नघरेवा सुसाणे वा एगराइयं पडिमं ठाइ । धणदेवेणं एयं नाऊणं तंबियाओ सूईओ घडाविआओ। तओ सुन्नघरे पडिमं ठियस्स वीससु वि अंगुलीनहेसु अक्को(क्खो)डियाओ । तओ सम्ममहियासमाणो वेयणाभिभूओ कालगतो देवो जाओ । ततो बिइअदिवसे गवेसिंतेहिं दिट्ठो । अक्कंदो जाओ । दिट्ठाओ सूईओ । गवेसिंतेहिं तंबकुट्टगसगासे उवलद्धं-धणदेवेण कारावियाओ । रूसिया कुमारा धणदेवं मग्गंति । दुण्हं वि बलाणं जुद्ध संपलग्गं । तओ सागरचंदो देवो अंतरे ठाऊणं उवसामेइ । पच्छा कमलामेला भयवओ सगासे पव्वइया । बृहत्कल्पपीठिकायाम् संस्कृत अनुवाद संवृत्तानि । ततः सागरचन्द्रोऽष्टमी-चतुर्दशीष शून्यगृहे वा श्मशाने वैकरात्रिकी प्रतिमां तिष्ठति | धनदेवेनैतज ज्ञात्वा ताम्रिकाः शूच्यो घटिताः । ततः शून्यगृहे प्रतिमां स्थितस्य विंशतिष्वप्यङ्गलीनखेष्वाक्षोदिताः । ततः सम्यगध्यासानो वेदनाऽभिभूतः कालगतो देवो जातः । ततो द्वितीयदिवसे गवेषयद्भिः दृष्टः । आक्रन्दो जातः । दृष्टाः शूच्यः । गवेषयद्भिः ताम्रकुट्टकसकाशे उपलब्धम्-धनदेवेन कारिताः । रुष्टाः कुमारा धनदेवं मार्गयन्ति । द्वयोरपि बलयोर्युद्धं सम्प्रलग्नम् । ततः सागरचन्द्रो देवोऽन्तरे स्थित्वोपशामयति । पश्चात् कमलामेला भगवतः सकाशे प्रव्रजिता ।। १९८

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