Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 216
________________ उसके बाद नशा उतरने पर विचार करता है - अहो ! मैंने कलंक-दोष का स्वीकार किया । अब उसका निर्वाह करना कैसे शक्य होगा ? इस प्रकार प्रद्युम्न के पास प्रज्ञप्ति विद्या मांगता है । उसने (प्रज्ञप्ति विद्या) दी । उसके बाद जिस दिन धनदेव का विवाह था, उसी दिन विद्या के प्रभाव (बल) से कमलामेला जैसा रूप बनाकर कमलामेला का अपहरण किया और उसे रैवताचल उद्यान में लाया | शांब आदि कुमारों ने उद्यान में जाकर नारद के रहस्य को भेदकर कमलामेला का सागरचन्द्र के साथ विवाह कर आनन्दपूर्वक रहते हैं । विद्या से बनाया कमलामेला का प्रतिरूपक भी विवाह समय अट्टहास करके गिरा, अतः कोलाहल हुआ | मालूम नहीं 'किसने अपहरण किया' ? इस प्रकार | प्राकृत 'तओ जाओ खोभो । न नज्जइ 'केणइ हरिय' त्ति ? । नारओ पुच्छिओ भणइ-दिट्ठा रेवइए उज्जाणे केणवि विज्जाहरेण अवहरिया । तओ सबलवाहणो नारायणो निग्गओ । संबो विज्जाहररूवं काऊण जुज्झिउं संपलग्गो । सव्वे दसाराइणो पराइया । तओ नारायणेण सद्धिं लग्गो । तओ जाहे णेणं णायं 'रुट्ठो ताउ 'त्ति तओ से चलणेसु पडिओ । कण्हेण अंबाडियो । तओ संबेण भणियं एसा अम्हे हिं गवक्खेण अप्पाणं मुयंती दिट्ठा । तओ कण्हेण उग्गसेणो अणुगामिओ । पच्छा इमाणि भोगे भुंजमाणाणि विहरति । अन्नया भयवं अरिट्ठनेमिसामी समोसरिओ । तओ सागरचंदो कमलामेला य सामिसगासे धम्मं सोऊण गहियाणु संस्कृत अनुवाद हृता इति । नारदः पृष्टो भणति दृष्टा रैवतिके उद्याने केनाऽपि विद्याधरेणाऽपहृता । ततः सबलवाहनः नारायणो निर्गतः । शाम्बो विद्याधररूपं कृत्वा योद्धुं सम्प्रलग्नः । सर्वे दशार्हराजानः पराजिताः । ततो नारायणेन सार्द्धं लग्नः । ततो यदा तेन ज्ञातम्- 'रुष्टस्तात : ' इति ततस्तस्य चरणयोः पतितः । कृष्णेन तिरस्कृतः । ततः शाम्बेन भणितम् - एषाऽस्माभिर्गवाक्षेणाऽऽत्मानं मुञ्चन्ती दृष्टा । ततः कृष्णेनोग्रसेनोऽनुगमितः पश्चाद् इमौ भोगे भुज्यमानौ विहरतः । अन्यदा भगवानरिष्टनेमिस्वामी समवसृतः । ततः सागरचन्द्रः कमलामेला च स्वामिसकाशे धर्मं श्रुत्वा गृहीतानुव्रतानि १९७

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