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अपाओग्गा भविस्सइ, तेण गंतुं महायणमझे वड्डेणं सद्देणं भणिओ, एहि एहि सीयली किर होइ अंबखल्लिया, सो लज्जितो, घरं गएण अंबाडिओ भणितो यएरिसे कज्जे नीयमागंतूण कण्णे कहिज्जइ, अन्नया
संस्कृत अनुवाद एतस्माद् युष्माकं लघु मोक्षो भवतु, ततस्तत्राऽपि पिट्टितः, सद्भावे कथिते मुक्तः, गतो नगरे, तत्रैकस्य दण्डिककुलपुत्रस्याऽऽलीनः स सेवमान आस्ते, अन्यदा दुर्भिक्षे तस्य कुलपुत्रस्य अम्लयवागू; सिद्धिमती (सिद्धाः): तस्य भार्यया स भण्यते-याहि, महाजनमध्यात् शब्दायय येन भुज्यते, शीतला अप्रायोग्या भविष्यति, तेन गत्वा महाजनमध्ये बृहता शब्देन भणित:- एहि एहि शीतला किल भवत्यम्लयवागूः, स लज्जितः, गृहं गतेन तिरस्कृतो भणितच ईदृशे कार्ये नीचमागत्य कर्णे कथयेत्,
हिन्दी अनुवाद सत्य बात कहने पर छोड़ दिया और वह नगर में गया । वहाँ एक मुखिया के पुत्र के घर रहकर उसकी सेवा करता है, एक बार दुष्काल में उस मुखिया के पुत्र के लिए छास से बनी खट्टी राब तैयार हुई, तब उसकी पत्नी उसे कहती है - तू जा और मुखीपुत्र को महाजन के बीच से बुलाकर ले आ, अतः वह पी सके, ठण्डी होने के बाद पीने योग्य नहीं रहेगी, उसने महाजन के बीच जाकर ऊँची आवाज में कहा, - 'चलो, चलो, खट्टी राब ठण्डी होती है । वह (मुखीपुत्र) शर्मिन्दा हो गया, घर जाकर उसने (मुखीपुत्रने) उसको धमकाया और कहा - ऐसे प्रसंग में धीरे से आकर कान में कहना चाहिए । एक बार घर जलने लगा,
प्राकृत घरं पलित्तं तस्स भज्जाए भणितो-लहुं सद्दावेह ठक्कुरं ति, ततो सो तत्थ गओ सणियं सणियं आसन्नं होऊण कण्णे कहेइ, जाव सो तत्थ गच्चा सणियं सणियं आसन्नं होऊण अक्खाउंपयट्टो, तावघरंसव्वं झामियं, तत्थ वि अंबाडिओ. भणियो य-एरिसे कज्जे न आगम्मइ, न वि अक्खाइज्जइ, किंतु अप्पणा चेव पाणियं वा गोमुत्तं वा आइंकाउंगोरसं पिछुब्भइ ताव जाव विज्जाइ, अन्नया तस्स दंडिपुत्तगस्स ण्हाइऊण धूविंतस्स धूमो निग्गच्छइ त्ति गोमुत्तं छूढं गोमूत्ताइयं च ।
आवश्यकसूत्रवृत्तौ ।
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