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(12) सिसुवालकहा
प्राकृत 'वसुदेवसुसाए 'सुओ, दमघोसणराहिवेण मद्दीए । जाओ 'चउब्भुओऽब्भुय-बलकलिओ कलहपत्तट्ठो 11177||
दळूण 'तओ'जणणी, चउब्भुयं पुत्तम ब्भुयमणग्धं ।
भयहरिसविम्हयमुही, "पुच्छइ 10नेमित्तियं 'सहसा 11178।। णेमित्तिएण मुणिऊण, 'साहियं 'तीइ हडहिययाए । जह 'एस तुब्भ पुत्तो, 1महाबलो 12दुज्जओ "समरे ||17911
एयस्स य 'जंदलूण, होइ, 'साभावियं भुयाजुगलं । 12होही 'तओ चिय"भयं, "सुतस्स ते 4नत्थि संदेहो | 118011
(12) शिशुपालकथा
संस्कृत अनुवाद वसुदेवस्वसुः माद्रयाः, दमघोषनराधिपेन । चतुर्भुजोऽद्भुतबलकलितः, कलहप्राप्तार्थः सुतो जातः ।।177।।
ततश्चतुर्भुजमद्भुतमनघु पुत्रं दृष्ट्वा जननी ।
भयहर्षविस्मयमुखी सहसा नैमित्तिकं पृच्छति ।।178।। नैमित्तिकेन ज्ञात्वा हृष्टहृदयायै तस्यै कथितम् । यथैष तव पुत्रो महाबलः, समरे दुर्जयः ||179।।
यं च दृष्ट्वैतस्य भुजायुगलं स्वाभाविकं भवति । ततश्चैव तव सुतस्य भयं भविष्यति; संदेहो नाऽस्ति ।।180।।
(12)
हिन्दी अनुवाद वसुदेव की बहन माद्री को दमघोष राजा से चार हाथवाला, अद्भुत सामर्थ्यवान और कलह में आसक्त पुत्र उत्पन्न हुआ । (177)
उसके बाद चार हाथवाले, अद्भुत और अमूल्य पुत्र को देखकर भय, हर्ष और विस्मित मुखवाली माता अचानक नैमित्तिक को पूछती है । (178)
नैमित्तिक ने ज्ञान से जानकर प्रसन्नचित्तवाली उसकी माता को कहा कि यह तेरा पुत्र अत्यंत शक्तिशाली और युद्ध में दुर्जेय होगा । (179)
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