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हिन्दी अनुवाद हे भगवन् ! आप इस भव में उत्तम हो, उसके बाद परभव में भी उत्तम बनोगे, उससे कर्मरजरहित बनकर चौदह राजलोक में उत्तमोत्तम स्थानरूप सिद्धिपद को प्राप्त करोगे । (130)
इस प्रकार नमिराजर्षिकी अनुपम श्रद्धापूर्वक स्तुति करते और प्रदक्षिणा देते हुए शक्रेन्द्र बारबार उनको वन्दन करते हैं । (131)
उसके बाद मुनिपुंगव नमिराजर्षि के चक्र और अंकुश के चिह्नवाले चरणों को नमस्कार करके, मनोहर और चंचल कुण्डल तथा मुकुट को धारण करनेवाले इन्द्र महाराजा आकाश मार्ग से चले गये । (132)
- इस प्रकार साक्षात् शक्रेन्द्र (इन्द्र महाराजा) द्वारा स्तुति किये गए नमिरुजर्षि आत्मा को भावित करते हैं और घर का त्याग करके विदेह देश के राजवी (राजा) चारित्र के विषय में उद्यमवान बनते हैं । (133)
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