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भणितं च-परप्राणान् हत्वा, आत्मानं यः सप्राणं करोति ।
अल्पानां दिवसानां कृते आत्मानं नाशयति ।।173।। दुःखाद् उद्विजन्, परं हत्वा, प्रतिकारं करोति ।
तन्निमित्तेन बहुकतरं, दुःखं पुनः प्राप्स्यति ||174|| एवमनुशिष्टः श्येनो भणति-कुतो मे धर्ममनः बुभुक्षादुःखार्दितस्य ? ।
हिन्दी अनुवाद श्येन (बाज) पक्षी ने कहा - हे राजन् ! जो तू उसे (कबूतर को) नहीं देगा, तो भूखा ऐसा मैं किसकी शरण में जाऊँगा ?
मेघरथ राजा ने कहा, - जिस प्रकार तुझे जीवन प्रिय है, उसी प्रकार निःशंक सभी जीवों को जीवन प्रिय है ।
__ कहा है कि - दूसरों के प्राणों का नाश करके जो स्वयं जिन्दा रहता है, वह कुछ दिनों के लिए अपना (स्वयं का) ही नाश करता है । (173)
(भूख के) दुःख से दुःखी, दूसरों को मारकर, (दुःख का) प्रतिकार करता है, वह इस निमित्त द्वारा पुनः अधिकतर दुःख प्राप्त करेगा । (174)
इस प्रकार हितशिक्षा प्राप्त बाज पक्षी कहता है-भूख के दुःख से पीड़ित मेरा मन धर्म में कैसे रहेगा ?
प्राकृत मेहरहो भणइ-अण्णं मंसं अहं तुहं देमि भुक्खपडिघायं, विसज्जेह पारेवयं, भिडिओ भणइ-नाहं सयं मयं मंसं खामि, फुरफुरेंतं सत्तं मारेउं मंसं अहं खामि । मेहरहेण भणियं
जत्तिय पारावओ तुलइ तत्तियं मंसं मम सरीराओ गेण्हाहि । एवं भवउ, त्ति भणइ (भिडिओ)
भिडियवयणेण य राया पारेवयं तुलाए चडावेऊण, बीयपासे निययं मंचं छेत्तूण चडावेइ.
संस्कृत अनुवाद मेघरथो भणति-अन्यं मांसमहं तुभ्यं ददामि बुभुक्षाप्रतिघातम्, विसृज पारापतम् ।
श्येनो भणति-नाऽहं स्वयं मृतं मांसं खादामि, पोस्फुसयमाणं सत्यं मारयित्वा मांसमहं खादामि ।
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