Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 02
Author(s): Vijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan
View full book text
________________
(9) दयावीरमेहरहनरिंदो
. प्राकृतअन्नया य मेहरहो उम्मुक्कभूसणाऽहरणो पोसहसालाए पोसहजोग्गासणनिसण्णो -
(9) दयावीरमेघरथनरेन्द्रः
संस्कृत अनुवाद अन्यदा च मेघरथ उन्मुक्तभूषणाऽऽभरणः पौषधशालायां पौषधयोग्याऽऽसन-निषण्णः ।
हिन्दी अनुवाद एक बार मेघरथ राजा आभूषण का त्यागकर पौषधशाला में पौषध के योग्य आसन पर बैठे ।
प्राकृत सम्मत्तरयणमूलं, 'जगजीवहियं सिवालयं फलयं । . . राईणं परिकहेइ, 'दुक्खविमुक्खं 'तहिं धम्मं ।।170।।
'एयम्मि देसयाले, भीओ पारेवओ'थरथरंतो ।
6पोसहसाल मइगओ, रायं ! "सरणं ति 10सणं ति ।।171।। अभओ त्ति भणइ 'राया, 'मा भाहि त्ति भणिए ट्ठिओ'अह सो। 1°तस्स य"अणुमग्गओ पत्तो, 12भिडिओ 14सो विमणुयभासी ।।172।।
नहयलत्थो रायं भणइ-मुयाहि एयं पारेवयं, एस मम भक्खो । मेहरहेण भणियं - न एस दायव्वो सरणागतो
संस्कृत अनुवाद तत्र राजानं सम्यक्त्वरत्नमूलं, जगज्जीवहितं शिवाऽऽलयं फलदम् । दुःखविमोक्षं धर्मं परिकथयति ||170।।
एतस्मिन् देशकाले, भीतः कम्पमानः पारापतः ।
पौषधशालामतिगतः, "राजन् ! शरणमिति शरणमिति ||171|| राजा 'अभयं' इति भणति, "मा बिभीहि" इति भणितेऽथ स स्थितः । तस्य चाऽनुमार्गतः श्येनः प्राप्तः सोऽपि मनुजभाषी ||172।।
-१७८

Page Navigation
1 ... 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258