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सभी जीव जीने की इच्छा रखते हैं परन्तु मरने की नहीं, अतः भयंकर उस जीवहिंसा का साधु भगवंत त्याग करते हैं । (136)
स्वयं अथवा अन्य के लिए, क्रोध अथवा भय से दूसरों को दुःख पहुँचे वैसा असत्य वचन नहीं बोलना चाहिए और दूसरों के पास नहीं बुलाना चाहिए । (137)
प्राकृत मुसावाओ य 'लोगम्मि, सव्वसाहूहि गरिहिओ । 6अविस्सासो य भूआणं, 'तम्हा मोसं विवज्जए ।।138।।
'चित्तमंत मचित्तं वा, अप्पं वा जइ वा बहुं ।
दंतसोहणमित्तं पि, 'उग्गंहसि अजाइया ।।139।। 'तं "अप्पणा 12 13गिण्हंति, 14नो विगिण्हावए 15परं । 18अन्नं वा गिण्हमाणं वा, नाणु जाणंति "संजया ।।140।।
अबंभचरियं घोरं, 'पमायं दुरहिट्ठियं । नाय रंति मुणी 'लोए, भेयाययणवज्जिणो ।। 141 ।।
. संस्कृत अनुवाद लोके सर्वसाधुभिर्मूषावादश्च गर्हितः । भूतानामविश्वास्यश्च , तस्मान् मृषां विवर्जयेत् ।।138।।
चित्तवदचित्तं वा, अल्पं वा यदि बहु ।
दन्तशोधनमात्रमपि, अवग्रहेऽयाचित्वा ||139।। तत् संयता आत्मना न गृह्णन्ति, नाऽपि परं ग्राहयन्ति । गृह्णन्तमपि वाऽन्यं नाऽनुजानन्ति ||140।।
लोके भेदाऽऽयतनवर्जिनो मुनयो, घोरं, प्रमाद, दुरधिष्ठितम्, अब्रह्मचर्यं नाऽऽचरन्ति ||141||
हिन्दी अनुवाद जगत् में सभी सज्जनों द्वारा मृषावाद = असत्यवचन की गर्हा की गई है और मृषावादी अविश्वासपात्र बनता है अतः मृषावाद का त्याग करना चाहिए । (138)
सचित्त = जीवसहित (फल-फूलादि) या अचित्त = जीवरहित (सोनाचांदी आदि) थोड़ा अथवा ज्यादा, (दाँत साफ करने की सली) दन्तशोधनी जितना
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