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(5) पुक्खरिणीवण्णं
प्राकृत
से जहाणामए पुक्खरिणी सिया, बहुउदगा बहुसेया बहुपुक्खला लद्धट्ठा पुंडरीकिणी पासादिया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा, तीसे णं पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया बुझ्या, आणुपुव्वुट्ठिया ऊसिया रुइला वण्णमंता गंधमंता फासमंता पासादिया दरिसणीया अभिरुवा पडिरुवा,
(5) पुष्करिणीवर्णनम्
संस्कृत अनुवाद
तद् यथानामका पुष्करिणी स्यात्, बहूदका, बहुसेया, बहुपुष्कला, लब्धार्था पुण्डरीकिणी, प्रासादिका, दर्शनीया, अभिरूपा, प्रतिरूपा, तस्या नु पुष्करिण्यास्तत्र तत्र देशे देशे तस्मिंस्तस्मिन् बहूनि पद्मवरपौण्डरीकाण्युक्तानि,
हिन्दी अनुवाद
पुष्करिणी के वर्णन में बहुत कमलों से विभूषित जलाशय का वर्णन :
दूसरे अंग श्रीसूत्रकृतांग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध के प्रथम पुंडरीक नामक अध्ययन के प्रथम सूत्र में बताते हैं कि जैसे कोई बहुत कमलोंवाला यथार्थ सरोवर हो कि जो प्रचुर जलवाला, प्रचुर कीचड़वाला, प्रभूत कमलोंवाला, उससे ही 'पुष्करिणी' इस प्रकार सार्थक नामवाला, प्रचुर श्वेत कमलोंवाला, निर्मल जलवाला अथवा देवमन्दिर जिसके नजदीक है वैसा, देखने योग्य, राजहंस आदि पक्षियों से शोभित, स्वच्छ पानी के कारण जहाँ प्रतिबिम्ब गिरता है वैसा, उसके प्रत्येक प्रदेश में प्रत्येक स्थान में उत्तम श्वेत कमल (पुंडरीक) शोभते हैं, वे सब विशिष्ट रचनापूर्वक कीचड़ और पानी का त्याग करके ऊपर रहे हुए हैं ।
प्राकृत
तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगे प्राकृत महं पउमवरपोंडरीए बुइए, अणुपुव्वुट्ठिए उस्सिए रुइले वन्नमंते गंधमंते रसमंते पासादीए जाव पडिरूवे ।
सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया बुइया अणुपुव्वुट्ठिया ऊसिया रुइला जाव पडिरूवा, सव्वावंति च णं तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगं महं पउमवरपोंडरीए बुइए अणुपुव्वुट्ठिए
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