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हिन्दी अनुवाद
हे क्षत्रिय ! हिरण्य (= सोने से बने आभूषण, चांदी), सुवर्ण = मात्र सोना, इन्द्रनील इत्यादि मणि, मोती, कांसा, विविध वस्त्र, वाहन तथा भण्डार की वृद्धि करके जाओ । (118)
यह बात सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षि ने उसके बाद देवेन्द्र ( शक्रेन्द्र ) को इस प्रकार कहा । ( 119 )
सोने और चाँदी के पर्वत हों और शायद वे कैलास = हिमालय जैसे असंख्य हों, तो भी लोभी मनुष्य को उससे अल्प भी सन्तोष नहीं होता है, क्योंकि इच्छाएँ आकाश के समान अनन्त: अपार हैं । (120)
खेत, चावल, जौ और पशुओं के साथ सुवर्ण प्रचुर मात्रा में हो तो भी एक व्यक्ति के लिए पूरा ( सन्तोषकारक ) नहीं है, इस प्रकार जानकर तप का आचरण करना चाहिए । (121)
प्राकृत
'एय' मट्ठे निसामित्ता, 'हेउकारणचोइओ ।
"तओ 'नमि 'रायरिसिं, 'देविन्दो 'इणम "ब्बवी ।।122 ।।
2 अच्छे 'मब्दए, 4 भोए 'चयसि 'पत्थिवा ! | 'असन्ते 'कामे 'पत्थेसि, 'संकप्पेण "विहम्मसि ।।123 ।। 1 एय मट्ठे निसामित्ता, 'हेउकारणचोइओ ।
'तओ 'नमी 'रायरिसी, 'देविन्दं 'इणम "ब्बवी ।।124 ।।
'सल्लं 'कामा 'विसं 'कामा, "कामा 'आसीविसोवमा । कामे 'पत्थेमाणा, अकामा "जन्ति "दोग्गइं ।।125 ।।
संस्कृत अनुवाद
एतमर्थं निशम्य, हेतुकारणनोदितः । देवेन्द्रस्ततो नमिं राजर्षिमिदमब्रवीत् ||122।
पार्थिव ! आश्चर्यकम्, अद्भुतान् भोगांस्त्यजसि । असतः कामान् प्रार्थयसे सङ्कल्पेन विहन्यसे ||123|| एतमर्थं निशम्य, हेतुकारणनोदितः ।
नमी राजर्षिस्ततो, देवेन्द्रमिदमब्रवीत् ||124।।
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कामाः शल्यं कामा विषं, कामा आशीविषोपमाः । कामान् प्रार्थ्यमानाः, अकामा दुर्गतिं यान्ति ||125 ||
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