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17. प्रा. न गणन्ति कुलं, न गणन्ति पावयं पुण्णमवि न गणन्ति ।
इस्सरिएण हि मत्ता, तहेव परलोगमिहलोयं ||54।। समास विग्रह :- परो य एसो लोयो परलोयो, तं परलोयम् (कर्मधारयः) ।
इह य एसो लोयो इहलोयो, तं इहलोयं (कर्मधारय) । सं. ऐश्वर्येण हि मत्ताः कुलं न गणयन्ति, पापकं न गणयन्ति, पुण्यमपि,
तथैव इहलोकं परलोकं च न गणयन्ति ।।54।। हि. ऐश्वर्य से अभिमानी (मनुष्य) कुल की परवाह नहीं करते हैं, पाप को
नहीं स्वीकारते हैं, पुण्य को भी (नहीं गिनते हैं) उसी तरह इहलोक
और परलोक को नहीं स्वीकारते हैं। 18. प्रा. न गणन्ति पुवनेहं, न य नीइं नेय लोयअववायं ।
न य भाविआवयाओ, पुरिसा महिलाए आयत्ता ||55।। समास विग्रह :- पुनस्स नेहो पुवनेहो, तं पुवनेहं (षष्ठीतत्पुरुषः) । लोयाणं अववाओ लोयअववाओ, तं लोयअववायं (षष्ठीतत्पुरुषः)।
भाविओ आवयाओ भाविआवयाओ, ताओ भाविआवयाओ (कर्मधारयः) । सं. महिलायामायत्ताः पुरुषाः पूर्वस्नेहं न गणयन्ति,
नीतिं न च, लोकापवादं न च, भाव्यापदो न च गणयन्ति ।।55।। हि. स्त्री के आधीन पुरुष पूर्व (माता-पिता) के स्नेह को नहीं गिनते हैं,
न्यायमार्ग को नहीं स्वीकारते हैं, लोकनिन्दा की परवाह नहीं करते
हैं और भविष्य में आनेवाली आपत्तियों की भी परवाह नहीं करते हैं। 19. प्रा. मेरू गरिठ्ठो जह पव्वयाणं, एरावणो सारबलो गयाणं ।
सिंहो बलिट्ठो जह सावयाणं, तहेव सीलं पवरं वयाणं ||56।। समास विग्रह :- सारं बलं जस्स सो सारबलो (बहुव्रीहिः) । यथा पर्वतानां मेरुर्गरिष्ठः, गजानामैरावणः सारबलः ।
यथा श्वापदानां सिंहो बलिष्ठः, तथैव व्रतानां शीलं प्रवरम् ||56।। हि. जैसे पर्वतों में मेरुपर्वत सबसे बड़ा है, हाथियों में ऐरावण हाथी श्रेष्ठ
बलवान है, जैसे शिकारी पशुओं में सिंह सर्वश्रेष्ठ बलवान है उसी
प्रकार व्रतों में शीलव्रत सर्वश्रेष्ठ है । 20. प्रा. बालत्तणम्मि जणओ, जुब्वणपत्ताइ होइ भत्तारो ।
वुड्डत्तणेण पुत्तो, सच्छंदत्तं न नारीणं ।।57।। समास विग्रह :- जुब्वणं पत्ता जुब्वणपत्ता, ताइ जुब्वणपत्ताइ (द्वितीयातत्पुरुषः)। . सस्स छंदत्तं सच्छंदत्तं (षष्ठीतत्पुरुषः) ।
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