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पाठ - 19 प्राकृत वाक्यों का संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद 1. प्रा. जे भावा पुदण्हे दीसीअ, ते अवरण्हे न दीसन्ति ।
सं. ये भावा पूर्वाणेऽदृश्यन्त, तेऽपराहणे न दृश्यन्ते । हि. जो भाव (पदार्थ) दिन के पूर्वभाग में दिखाई दिये, वे दिन के पिछले
भाग में दिखाई नहीं देते हैं। 2. प्रा. जह पवणस्स रउद्देहिं गुंजिएहिं मंदरो न कंपिज्जइ, तह खलाणं
असब्भेहिं वयणेहिं सज्जणाणं चित्ताइं न कंपीइरे । सं. यथा पवनस्य रौद्रैर्गुञ्जितैर्मन्दरो न कम्प्यते , तथा खलानामसभ्यैर्वचनैः
सज्जनानां चित्तानि न कम्प्यन्ते । हि. जिस तरह पवन के भयंकर गुंजारव से मेरुपर्वत कंपायमान नहीं
होता है, उसी तरह दुर्जनों के असभ्य वचनों से सज्जनों के चित्त
कंपायमान नहीं होते हैं। 3. प्रा. धम्मेण सुहाणि लब्मन्ति, पावाइं च नस्संति ।
सं. धर्मेण सुखानि लभ्यन्ते, पापानि च नश्यन्ते ।
हि. धर्म से सुख प्राप्त होते हैं और पाप नष्ट होते हैं। 4. प्रा. समणोवासएहिं चेइएसु जिणिंदाणं पडिमाओ अच्चिज्जीअ ।
सं. श्रमणोपासकैश्चैत्येषु जिनेन्द्राणां प्रतिमा आय॑न्त ।
हि. श्रावकों द्वारा चैत्यों में जिनेश्वरों की प्रतिमा पूजी गई। 5. प्रा. विउसाणं परिसाए मुरुक्खेहिं मउणं सेवीअउ, अन्नह मुक्खत्ति
नज्जिहिन्ति । सं. विदुषां पर्षदि मूखैमौनं सेव्यताम् , अन्यथा मूर्खा इति ज्ञास्यन्ते । हि. विद्वानों की पर्षदा में मूरों द्वारा मौन रखा जाय, अन्यथा वे मूर्ख
हैं, ऐसा सिद्ध होगा । (जाना जायेगा)। 6. प्रा. देवेहिं सीयलेण सुहफासेण सुरहिणा मारुएण जोयणपरिमंडला
भूमी सवओ समंता संपमज्जिज्जइ । सं. देवैः शीतलेन सुखस्पर्शेण सुरभिणा मारुतेन योजनपरिमंडला
भूमिः सर्वतः समन्तात् संप्रमृज्यन्ते । हि. देवों द्वारा शीतल, सुखदायी स्पर्शवाले, सुगन्धित पवन से एक
योजन गोलाकार भूमि सर्वत्र चारों ओर से स्वच्छ की जाती है ।
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