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हि. कदाचित् पानी में से भी अग्नि हो, कदाचित् गाय के सींग में से दूध
हो, कदाचित् विष में से भी अमृत हो किन्तु जीवहिंसा से धर्म नहीं
होता है। 29. प्रा. स्वरिसंतु 'घणा मा वा, श्मरंतु "रिऊणो अहं निवो व्होज्जा ।
सो "जिणउ "परो 12भज्जउ, एवं "चिंतणमवज्झाणं ।।14|| सं. घना वर्षन्तु मा वा, रिपवो म्रियन्तां, अहं नृपो भवेयम् ।
स जयतु, परो भनक्तु, एवं चिंतनमपध्यानम् ।।14।। हि. बरसात (पानी की वृष्टि) हो अथवा न हो, शत्रु मरें, मैं राजा बनूँ,
उसकी जीत हो, दूसरे हार जाये, इस प्रकार का चिंतन करना वह
दुर्ध्यान है। 30. प्रा. 'गुणिणो गुणेहिं 'विहवेहि, विहविणो 'होंतु गविआ नाम ।
दोसेहि नवरि 10गव्वो, "खलाण 12मग्गो च्चि अ 13अउव्वो ||15।। सं. गुणिनो गुणैः, विभवैर्विभविनो गर्विता नाम भवन्तु ।
नवरं दोषैर्गर्वः, खलानां मार्गो अपूर्व एव ।।1511 हि. गुणवान पुरुष गुणों से, धनवान पुरुष धन से (कदाचित्) गर्वित
बने, किन्तु दोषों से गर्व करना यह दुर्जनों का मार्ग अपूर्व ही है। 31. प्रा. 'जइ वि दिवसेण 'पयं, 11धरेह पक्खेण श्वा "सिलोगद्धं ।
उज्जोगं 13मा 1 मुंचह, 'जइ 'इच्छह सिक्खिउं नाणं ||16।। सं. यदि ज्ञानं शिक्षितुमिच्छत, यद्यपि दिवसेन पदं धारयत ।
पक्षेण वा श्लोकार्द्धम् , उद्योगं मा मुञ्चत ||16|| हि. जो तुम ज्ञान पढ़ने = प्राप्त करने की इच्छा रखते हो तो एक दिन
में एक पद अथवा पक्ष = पन्द्रह दिन में आधा श्लोक याद करो,
किन्तु प्रयत्न नहीं छोड़ो। 32. प्रा. कुणउ तवं पालउ, संजमं पढउ सयलसत्थाई ।
'जाव न झायइ जीवो, "ताव उन 12मुक्खो "जिणो 15भणइ ।।17।। सं. तपः करोतु, संयमं पालयतु, सकलशास्त्राणि पठतु |
यावज्जीवो न ध्यायति, तावन् मोक्षो न, जिनो भणति ||17।। हि. तप करो, संयम का पालन करो, सर्वशास्त्र पढ़ो, लेकिन जब तक
जीव शुभ ध्यान नहीं करता है तब तक मोक्षप्राप्ति नहीं है, इस प्रकार श्रीजिनेश्वर परमात्मा कहते हैं।
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