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सं. कलौ प्रविष्टे मुनीनामागमार्था गलिष्यन्ति ।
आचार्या अपि शिष्येभ्यः, सम्यक् श्रुतं न दास्यन्ति ||18|| हि. कलियुग प्रवेश करने पर मुनियों के आगम के अर्थ नष्ट हो जायेंगे,
आचार्य भी शिष्यों को सम्यक् श्रुत नहीं देंगे। 27. प्रा. नरवइणो कुडुंबिणा सह जुज्झिस्सन्ति ।
सं. नरपतयः कुटुम्बिना सह योत्स्यन्ते ।
हि. राजा कुटुम्ब के साथ युद्ध करेंगे । 28. प्रा. जे जिणपडिमं सिद्धालयं वा पूइस्सन्ति ताण घरं थिरं होही ।
सं. ये जिनप्रतिमां सिद्धालयं वा पूजयिष्यन्ति, तेषां गृहं स्थिरं भविष्यति । हि. जो लोग जिनप्रतिमा अथवा सिद्धालय की पूजा करेंगे, उनका घर
स्थिर होगा। प्रा. न वि अत्थि नवि होही, पाएण तिहयणम्मि सो जीवो ।
जो जोव्वणमणुपत्तो, वियाररहिओ सया होइ ।।19।। सं. प्रायस्त्रिभुवने स जीवो नाप्यस्ति नापि भविष्यति ।
यो यौवनमनुप्राप्तः, विकाररहितस्सदा भवति ||19।। हि. प्रायः तीन भुवन में वैसा कोई भी जीव नहीं है और होगा भी नहीं
कि जो यौवन को प्राप्त करके हमेशा विकाररहित हो ।
__ हिन्दी वाक्यों का प्राकृत एवं संस्कृत अनुवाद 1. हि. तू पापों की निन्दा करेगा तो सुखी होगा।
प्रा. जइ तुंपावाइं निदिहिसि तया सुही होहिसि । सं. यदि त्वं पापानि निन्दिष्यसि, तदा सुखी भविष्यसि । हि. हम नाव में बैठेंगे और सरोवर में क्रीड़ा करेंगे । प्रा. अम्हे नावाए उवविसिस्सामो, सरंमि य कीलिस्सामो ।
सं. वयं नाव्युपविक्ष्यामः, सरसि च क्रीडिष्यामः । 3. हि. हम स्वामी के लिए माला गूंथेंगे (बनायेंगे)।
प्रा. अम्हे पहुणो मालं गंठिस्सामो | . सं. वयं प्रभवे मालां ग्रन्थिष्यामः । हि. वह लोभी है इसलिए ब्राह्मणों को धन नहीं देगा । प्रा. स लोद्धओ अत्थि, तत्तो बंभणाणं धणं न दाहिइ ।
सं. स लुब्धकोऽस्ति, ततो ब्राह्मणेभ्यो धनं न दास्यति । 5. हि. स्वप्न में चन्द्रमा ने मुख में प्रवेश किया, इसलिए तू राज्य प्राप्त करेगा।
प्रा. सुमिणम्मि चंदो मुहं पविसीअ, तत्तो तुं रज्जं पाविहिसि ।
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