________________
प्राकृत
21. जस्स धम्मो व अट्ठो अत्थि, तं नरं सव्वे
| अवेक्खिरे ।
22. सो नग्गो भमइ,
जणेहिंतो विन
क्र.
लज्जइ ।
23. धम्मो सुहाणं मूलं,
दप्पो मूलं
विणासस्स ।
24. प्रा.
सं.
क्र.
हि.
25. प्रा.
सं.
हि.
संस्कृत
हिन्दी
यस्य धर्मो वाऽर्थोऽस्ति, जिसके पास धर्म अथवा
तं नरं सर्वे अपेक्षन्ते ।
धन है, उस व्यक्ति की सभी अपेक्षा रखते हैं । वह नग्न घूमता है, लोगों से भी शरमाता नहीं है ।
धर्म सुखों का मूल है, अभिमान विनाश का
मूल है ।
1. सज्जन पुरुष पापियों
का विश्वास नहीं करते हैं ।
स नग्नो भ्रमति, जनेभ्योऽपि
न लज्जते ।
धर्मः सुखानां मूलं, दर्पो मूलं विनाशस्य |
'मणोरहे 'विविहे ।
'धिद्धि मूढा 'जीवा, कुणंति 'गुरु 10न उ "जाणंति 'वराया, "झायइ "दइवं किमवि 14 अन्नं ||2|| धिग् धिक् मूढा जीवाः, विविधान् गुरुकान्, मनोरथान् कुर्वन्ति । वराकास्तु न जानन्ति, दैवं किमप्यन्यत् ध्यायति ||2|| धिक्कार है कि मूर्ख जीव अनेक प्रकार के बड़े मनोरथ करते हैं, लेकिन वे बिचारे जानते नहीं है कि भाग्य कुछ अलग विचारता है । 'विणया णाणं णाणाओ, 'दंसणं 'दंसणाहि 'चरणं च । चरणाहिंतो मुक्खो, मोक्खे "सोक्खं "अणाबाहं ||3|| विनयाज् ज्ञानं, ज्ञानाद् दर्शनं, दर्शनाच्चरणं च
चरणान् मोक्षः, मोक्षे सौरव्यमनाबाधम् ||3||
विनय से ज्ञान, ज्ञान से दर्शन, दर्शन से चारित्र और चारित्र से मोक्ष, मोक्ष में पीड़ारहित सुख है ।
हिन्दी वाक्यों का प्राकृत एवं संस्कृत अनुवाद
हिन्दी
प्राकृत
सज्जणा पावे न वीससन्ति ।
२९
संस्कृत
सज्जनाः पापान् न विश्वसन्ति ।