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हि. कान श्रुत के श्रवण से शोभते हैं, कुंडल से नहीं, हाथ दान से शोभते हैं आभूषण से नहीं, दयालु मनुष्यों का देह परोपकार से शोभता है चन्दन से नहीं ।
हिन्दी वाक्यों का प्राकृत एवं संस्कृत अनुवाद 1. हि. अमृत पीया लेकिन अमर नहीं हुआ । प्रा. अमियं पासी, किन्तु अमरो न हवीअ । सं. अमृतमपिबत्, किन्त्वमरो नाऽभवत् । 2. हि. पराक्रम से शत्रुओं को जीता । प्रा. परक्कमेण सत्तू जिणीअ ।
सं. पराक्रमेण शत्रूनजयत् ।
हि. मुसाफिरों ने वृक्ष के नीचे विश्रान्ति ली । पावासुणो वच्छस्स अहो विस्समीअ ।
प्रा.
सं. प्रवासिनो वृक्षस्याऽधो व्यश्राम्यन् ।
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4. हि. राम ने गुरु के आदेश का अनुसरण किया इसलिए सुखी हुआ । प्रा. रामो गुरुस्स आएसं अणुसरीअ तत्तो सुही अभू ।
सं. रामो गुरोरादेशमन्वसरत्, ततः सुख्यभवत् ।
5. हि. प्रवासी ने किसान को रास्ता पूछा
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प्रा. पवासी हालिअं मग्गं पुच्छीअ । सं. प्रवासी हालिकं मार्गमपृच्छत् ।
6. हि. दक्षिण दिशा का पवन बरसात लाया । प्रा. दाहिणिल्लो वाऊ वरिसं आणेसी । सं. दाक्षिणात्यो वायुर्वर्षामानयत् ।
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7. हि. सज्जन दुर्जन के जाल में पड़ा ।
प्रा. सज्जणो दुज्जणस्स जालंमि पडीअ ।
सं. सज्जनो दुर्जनस्य जालेऽपतत् ।
8. हि. उसने प्राणान्ते भी अदत्त का ग्रहण नहीं किया । सो जीवितेवि अदत्तं न गिण्हीअ ।
प्रा.
सं. स जीवितान्तेऽप्यदत्तं नाऽगृह्णात् ।
9. हि. जैन धर्म में जैसा तत्त्वों का ज्ञान देखा, वैसा अन्य में नहीं देखा । प्रा. जइणधम्मे जारिस तत्ताणं नाणं देक्खीअ, तारिस अन्नंमि न
पेक्खी ।
सं. जैनधर्मे यादृशं तत्त्वानां ज्ञानमपश्याम, तादृशमन्यस्मिन्नाऽपश्याम |
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