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गुणस्थान का साधक साधु रौद्रध्यान से सर्वथा बच गया। और जब छट्टे पर भी रौद्रध्यान है ही नहीं तो फिर आगे के गुणस्थानों पर तो सवाल ही खडा नहीं हो सकता है । अतः आगे के गुणस्थान शुभ ध्यान के हैं। बस, फिर तो आगे के गुणस्थान पर तो धर्मध्यान-शुक्लध्यान की ही सत्ता है। ..
लेकिन एक प्रश्न यहाँ जरूर खडा होता है कि- साधु जीवन के अतिचार दर्शक सूत्र में- “आर्तध्यान रौद्रध्यान ध्यायां, धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्यायां नहीं ।” अतिचार के इस सूत्र में जबकि रौद्रध्यान का अधिकारी छठे गुणस्थान का मालिक साधु है ही नहीं फिर भी उसको अतिचार लगते हैं ऐसा बताया है । तथा छठे गुणस्थान पर शुक्लध्यान की भी, सत्ता बताई है । जबकि सूत्रकार ने शुक्लध्यान की सत्ता छढे गुणस्थान से बताई भी नहीं है । फिर भी छठे गुणस्थान के साधु को शुद्धध्यान न ध्याने पर भी अतिचार लगता है। और छठे गुणस्थान पर रौद्रध्यान नहीं है फिर भी रौद्रध्यान का अतिचार लगता है।
फिर भी समझा जा सकता है कि... द्रव्य से या बाह्य रूप से वह छठे गुणस्थान पर साधु बना होगा लेकिन भाव की आभ्यन्तर कक्षा से साधु न बनने के कारण तथा साथ ही राग-द्वेष की तीव्रता, प्रमाद-कषाय की तीव्रता बढने पर, परिग्रहादि के निमित्त कारण बढने पर आर्त में से रौद्रध्यान में प्रवेश संभव हो भी जाता है । कुछ देर के लिए रौद्रध्यान कर भी लेता होगा। या कषायादि की तीव्रता के ही बने हुए स्वभाव के कारण बार-बार भी रौद्रध्यान होना संभव लगता है। लेकिन शुक्लध्यान भी छठे गुणस्थान पर आभ्यन्तर कक्षा में शुद्धि बढने पर तथा कषाय की मन्दतो होने पर... एवं प्रमादभाव का त्याग करके अप्रमत्तभाव आने पर अभ्यास के लिए...१ ले, २ रे चरण के शुक्लध्यान की संभावना लगती है। अप्रमत्तभाववाले ७ वे गुणस्थानवाले के लिए तो संभव है लेकिन छ? गुणस्थानवाले प्रमत्त साधु के लिए असंभवसा लगता है । जित्नी देर तक अप्रमत्त बने उसमें धर्मध्यान से शुक्लध्यान में प्रवेश संभव हो सकता है । साधु जो लोलक की तरह ऊपर-नीचे दोनों तरफ जाता है वैसे वह छठे से पाँचवे गुणस्थान पर तथा पुनः छठे पर और कभी कभी सातवे गुणस्थान पर भी जा सकता है । अपनी भूमिका पर स्थिर रहता भी है और नहीं भी रहता है । अतः गुणस्थान परिवर्तन होता रहता है। आर्त-रौद्रध्यान की लेश्याएँ
लेश्यात्रयं च कृष्णादि नातिसंक्लिष्टकं भवेत् ।। ७९ ।। कापोत-नील-काला-अतिसंक्लिष्टा भवंति दुर्लेश्या ।। ९४ ।।
ध्यान साधना से "आध्यात्मिक विकास"
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