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श्वासोच्छ्वासरूप सूक्ष्मकाययोग ही शेष रहे तब ही यह ध्यान होता है। अतः यह ध्यान १३ वे गुणस्थान के अन्त में होता है । सयोगी केवली के लिए... प्रधान ध्यान साधना शुक्ल ध्यान की ही है ।
हमारे और सर्वज्ञ के ध्यान में अन्तर
छद्मस्थस्य यथा ध्यानं, मनसः स्थैर्यमुच्यते ।
तथैव वपुषः स्थैर्यं ध्यानं केवलिनो भवेत् ॥ १०१ ॥
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हम जो छद्मस्थ जीव हैं हमारा ध्यान कैसा होता है ? और सर्वज्ञ भगवान जो वे गुणस्थान पर पहुँचे हुए सयोगी सर्वज्ञ के ध्यान में आसमान जमीन का अन्तर है । हमारे जैसे छद्मस्थों का ध्यान जो कषाय प्रधान हो तो आर्त- रौद्र ध्यान कहते हैं । तथा कषाय कम हो जाने पर धर्मध्यान कहते हैं। उसके पश्चात् शुक्लध्यान प्रारम्भ हो जाता है । तत्त्वार्थसूत्रकार वाचक मुख्यजी उमास्वातिजी म. “शुक्ले चाद्ये पूर्वविदः " तथा " परे केवलिनः” ९/३९, ४० इन दोनों सूत्रों से ज्यादा स्पष्ट करके कहते हैं कि... उपशम और क्षपक श्रेणी के आरम्भ में धर्म और शुक्ल दोनों प्रकार के ध्यान होते हैं। दोनों श्रेणी में ८, ९ और १० वे गुणस्थान पर धर्मध्यान होता है । ११ वे तथा १२ वे गुणस्थान पर शुक्लध्यान और धर्म ध्यान दोनों बताए हैं। इस तरह १२ वे गुणस्थान पर्यन्त धर्मध्यान की सत्ता दर्शायी है इससे धर्मध्यान का अस्तित्व सिद्ध होता है । यद्यपि प्राधान्यता शुक्लध्यान की रहती है । तथा पूर्वी (शास्त्रों की संज्ञाविशेष है) के जानकारों के लिए विशेष व्यवस्था बताते हुए कहते हैं कि
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उपशान्त कषाय और क्षीण कषायवाले मुनि यदि पूर्वधर अर्थात् पूर्वों के अच्छे ज्ञाता हो तो उनको शुक्लध्यान ११ वे तथा १२ वे गुणस्थान पर होता है । तथा श्रेणी के आरंभक मुनि यदि पूर्वधर - पूर्वों के ज्ञाता न हो तो उनके लिए श्रेणी में धर्मध्यान की प्राधान्यता रहती है । इस तरह धर्मध्यान के अभ्यास की विशेष सिद्धि से वे आगे शुक्लध्यान में प्रविष्ट होते हैं । यह सामान्य रूप विशेष स्पष्ट करते हुए भेद किया है।
इस प्रकार जब तक १३ वे गुणस्थान पर नहीं पहुँचते है और केवली सर्वज्ञ नहीं बनते हैं वहाँ तक वे छद्मस्थ ही कहलाते हैं । अतः छद्मस्थ के ध्यान और सर्वज्ञ के ध्यान
जो विशेष अन्तर बताया है वह है— छद्मस्थ योगी के ध्यान में मन को स्थिर करने का लक्ष्य होता है । बस, मनोजय - मनोनिग्रह में ही ध्यान की सिद्धि - पूर्णता मान लेते हैं । इसलिए मनोजयलक्षी ध्यान छद्मस्थ का कहलाता है। जबकि सर्वज्ञ केवली प्रभु जो १३
विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति "
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