________________
इन १५ प्रकारों में भी मनुष्य विशेष की योग्यता आदि देखने पर मुश्किल से १ - २% ही मनुष्य ऐसे निकलेंगे जो मोक्षगामी जीव हैं। क्योंकि १५ प्रकार तो भूमि- क्षेत्र जन्य हैं । लेकिन उस जीवविशेष की योग्यता पात्रतादि सब दृष्टि से विचार करने पर... मुश्किल से १% या २% मनुष्य ही मोक्ष के पात्र ठहरेंगे । अब इस प्रकार के १ या २% में हमारी गणना करानी हो तो हमें भी सम्यग् दर्शन आदि गुणों को प्राप्त करने के लिए प्रबल पुरुषार्थ करना ही चाहिए। इस तरह गति द्वार की दृष्टि से विचार करने पर... मनुष्य गति में भी कैसे मनुष्य की योग्यता मोक्षगमनार्थ होती है ? का विचार किया जा सकता है ।
मोक्ष पाने के लिए मनुष्य गति का २ तरीके से विचार किया जा सकता है । १) अनन्तर, और २) परम्पर । अनन्तर में तो अंतिम भव की मनुष्य गति ही गिनी जाएगी । जबकि परम्पर के प्रकार में अन्तिन मनुष्य गति के जन्म को पाने के लिए उसके पहले की गति के जन्म कारणभूत बनते हैं । उन परम्पर गति से अन्त में अनन्तर मनुष्य गति को पाकर ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
४) लिंगद्वार- जैसे कि हम सिद्ध के १५ भेदों में लिंग का विचार कर आए हैं । उसी विचारणा को यहाँ भी समझनी चाहिए। जगत् में अनन्त सभी जीवों का वेद की दृष्टि से ३ प्रकार के लिंगो में विभाजन किया है । १) स्त्री, २) पुरुष, ३) और नपुंसक लिंग । लिंग शब्द दो अर्थ में प्रचलित है । १ वेद और २ चिन्ह | वेद विषयवासना की काम संज्ञ को कहते हैं । तथा चिन्ह अर्थ शरीर का भेदक अंगविशेष का सूचक है । जिसके कारण स्त्री की या पुरुष की स्वतंत्र पहचान होती है । वह चिन्हविशेष वर्तमान काल की दृष्टि से विचार करने पर अलिंगी-अवेदी ही सिद्ध हो सकता है । अतः सिद्ध होने के पहले वेद वासना की संज्ञारूप कामसंज्ञा सर्वथा समाप्त हो जाय तो ही मुक्ति संभव है । लेकिन उस समय अर्थात् मोक्ष प्राप्ति को पूर्वावस्था में जो शरीर जिस प्रकार का रहता है, वैसा चिन्हरूप लिंग रहता ही है । वह लोप नहीं रहता है । शरीर का अंगविशेष है। नौंवे गुणस्थान पर आकर लिंग अर्थात् वेदगत वासना समाप्त हो जाती है। बस, फिर तो किसी भी प्रकार की कामसंज्ञादि कुछ भी नहीं रहती है । तभी मुक्ति संभव है, अन्यथा नहीं । यद्यपि तीनों लिंगधारी मोक्ष में जा सकते हैं ।
1
यह उपरोक्त विचारणा द्रव्यलिंग की है। भावलिंग अर्थात् आत्मा के लिंग (चिन्ह-पहचान) की भी विचारणा आन्तरिक दृष्टि से करनी चाहिए। शरीर का लिंग भेदक
१४३२
आध्यात्मिक विकास यात्रा