Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 516
________________ 1 सापेक्षिक अभाव जरूर हो सकता है। आप एक भी नाम ऐसा नहीं बता पाएंगे कि ... जिसका वाचक पदार्थ संसार में हो ही नहीं । और दूसरी तरफ ऐसा एक भी पदार्थ नहीं बता पाएंगे कि जिसका वाचक कोई नाम ही न हो । अतः वाच्य - वाचक भाव संबंध पदार्थ और नाम के संबंध को स्पष्टरूप से सूचित करते हैं । यदि कोई कहता है कि आत्मा नहीं है । इस अभाव सूचक वाक्य रचना में .... “आत्मा” शब्द का पहले प्रयोग करके पदार्थ की सत्ता को स्वीकार करके बाद में धातु से नहीं है कह रहा है । अर्थात् इससे स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि जिसकी सत्ता है उसी का अभाव यदि वह सिद्ध करता है तो किस अपेक्षा से सिद्ध करता है ? कालिक या क्षेत्रीय, या संयोगिक ? इस तरह सापेक्षवाद की दृष्टि से अपेक्षा जानने पर ख्याल आएगा कि .. आत्मा नहीं है । परन्तु कहाँ नहीं है ? किसमें नहीं है ? कब से नहीं है ? इत्यादि क्षेत्र-काल-संयोग विषयक प्रश्न पूछने पर वक्ता स्पष्टीकरण करेगा कि. मृत देह में नहीं है । जड पुद्गल अजीव द्रव्य में आत्मा नहीं है । और २ घंटे से या दो दिन से इस शरीर में आत्मा नहीं है । अर्थात् पहले थी । इस तरह जब आत्मा के रहते हुए भी, अस्तित्व होते हुए भी कालान्तर में, क्षेत्रगत कालगत, संयोगवशात् आदि अपेक्षाओं से अभाव मानना इसे शाश्वत त्रैकालिक अभाव नहीं कह सकते हैं । यह कारणिक और कालिक अभाव है । वियोगात्मक अभाव है । I I । 1 I इसी तरह यदि कोई कह दे कि “मोक्ष नहीं है” । तो यह भी त्रैकालिक अभाव सूचक वाक्य नहीं है । या पदार्थ के अस्तित्व का सदाकालीन अभाव सूचक वाक्य नहीं है । परन्तु कालिक है । संयोगिक है । नैमित्तिक है । वक्ता को वैसे प्रश्न पूछने पर वह स्पष्ट करेगा कि... अभवी जीव की अपेक्षा मोक्ष नहीं है । यहाँ सापेक्षवाद के सिद्धान्तानुसार जब अभवी जीव की अपेक्षा ली तब मोक्ष का अभाव सिद्ध किया है। यह तो “वन्ध्यापुत्र” के जैसी बात हुई । जैसे वन्ध्या में पुत्रोत्पादक क्षमता, या सामर्थ्य - योग्यता ही नहीं है । ठीक वैसे ही अभवी जीव में मोक्षप्राप्ति विषयक योग्यता - क्षमता - सामर्थ्य ही नहीं है तो फिर अभवी के लिए मोक्ष नहीं ही होता है। इससे मोक्ष की त्रैकालिक सत्ता का अभाव सिद्ध नहीं होता है । अपितु ... अभवी और मोक्ष के संयोग की सत्ता का अभाव सिद्ध होता है । मोक्ष तो है ही । मोक्ष का त्रैकालिक अभाव नहीं है। तीनों काल में भव्यात्माओं का तो मोक्ष सिद्ध है ही... । इस सिद्धान्त में अपवाद रूप से अभवी की अपेक्षा से मोक्ष नहीं है यह जब वाक्यप्रयोग किया गया है तब... मात्र अभवी के लिए ही मोक्ष का न होना - मानना यह अभवी निमित्तक अभाव होगा । अभवी संयोगिक अभाव होगा । इसे जरूर त्रैकालिक १४७२ आध्यात्मिक विकास यात्रा

Loading...

Page Navigation
1 ... 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534