Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 514
________________ एक ही सिद्धान्त बना लीजिए कि कर्मजन्य या कर्माधीन अवस्था में संसारी जीव की जो और जैसी अवस्था जीव की रहती है वैसी मोक्ष में नहीं रहती है । क्यों कि वहाँ कारणभूत कर्म है ही नहीं । अतः वहाँ कर्म के अभाव में कर्मजन्य परिणामों का सवाल ही नहीं उठता है । अतः उनका अभाव रहता है । कर्मजन्य ये पाँचों भाव जो शरीरादि हैं इन सबका अभाव मोक्ष में रहता है। अतः सिद्ध अशरीरी, अनायुष्यी, प्राणरहित, योनिरहित और अक्षयस्थितिवाले कहलाते हैं । 1 1 1 यहाँ अभाव शब्द का अर्थ यह नहीं है कि... सभी बातों का संपूर्ण अभाव ही ले लें । इससे तो मोक्ष सर्वथा अभावात्मक सिद्ध हो जाएगा। जैसी गल्ती बौद्ध दर्शन ने की है, वैसी भयंकर कक्षा की भूल जैन आर्हत् दर्शन ने नहीं की है। क्यों जी ? मोक्ष में क्या क्या है ? इसमें पूछा गया है कि वहाँ क्या क्या है ? इसके बदले उनको उत्तर दिया गया कि वहाँ क्या-क्या नहीं है ? यह नहीं है, वह नहीं है, ऐसा नहीं है, वैसा नहीं है, इत्यादि सब नकारात्मकवाले, निषेधात्मक जबाब दिये गये । अतः सामनेवाली व्यक्ति ने ऐसी धारणा ही बना ली कि ... बस, जहाँ कुछ नहीं है, वही मोक्ष है । इससे मोक्ष अभावात्मक सिद्ध कर दिया गया । और ऐसे अभावात्मक मोक्ष को शून्यस्वरूप कह दिया गया । लेकिन साथ-साथ यह नहीं सोचा कि अभावात्मक या शून्यात्मक स्थिति मोक्ष की कह पर... अजर-अमर त्रिकाल - स्थायी आत्मा का भी लोप हो जाएगा । केन्द्रीभूत पदार्थ आत्मा का. ही अभाव मान लेंगे तो तो फिर बचा ही क्या ? फिर तो मोक्ष को अभावात्मक मानना ही पडेगा । इसीलिए बौद्धों ने मोक्ष को वैसा अभावात्मक मान लिया है । बस, जब कुछ भी नहीं है तो आत्मा भी नहीं है । अतः शून्याकार मोक्ष है । 1 लेकिन बौद्ध दर्शन ने इतना भी नहीं सोचा कि ... अभाव किसका होता है ? अभाव का अभाव नहीं होता है । भाव का ही अभाव सिद्ध हो सकता है । अभाव मानने के लिए अनिवार्य है कि सबसे पहले भावरूप पदार्थ की सत्ता स्वीकारी जाय । जैसे कि नहीं है पूछने पर कौन नहीं है ? क्या नहीं है ? ये प्रश्न उठेंगे । अतः आप नामादि बताएंगे । आत्मा नहीं है । लेकिन नहीं के पहले आत्मा शब्द लाया कहाँ से ? आत्मा नामक द्रव्य-पदार्थ का सन्तित्व था तब तो आपने कहा कि नहीं है । अतः अभाव त्रैकालिक सिद्ध नहीं होता है । कारणिक, कालिक, संयोगिक, सादृश्यविषयक, क्षेत्रीय आदि दृष्टि से अभाव भी उपरोक्त हेतुओंवाला सहेतुक ही सिद्ध हो सकता है । अन्यथा नहीं। तीनों काल में जिसका अभाव सदा ही रहता है उसका प्रयोग व्यवहार में भी कहाँ होता है ? जैसे कि गधे के सिंग, वन्ध्यापुत्र, आकाशकुसुम, शशशृंग, इन सबका अभाव त्रैकालिक है । अतः इनका 1 आध्यात्मिक विकास यात्रा १४७०

Loading...

Page Navigation
1 ... 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534