Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 528
________________ मानस को विधेयात्मक बनाती है। जिससे नकारात्मक निषेधात्मक मानसिक वृत्ति सदा के लिए बदल जाती है । चली जाती है । और पटरी पर सीधी चलती ट्रेन की तरह हमारी मानसिक मनोवृत्ति भी बिल्कुल सीधी चलती रहती है । वह भी सिद्ध की दिशा में मुक्ति प्राप्त करने की दिशा में ही सीधी चलती रहती है । इसी तरह निरंतर चलते रहने पर एक दिन गन्तव्य स्थान-चरम ध्येयरूप मुक्ति की प्राप्ति सुलभ होती है। एक न एक दिन संसारी जीवात्मा मुक्ति प्राप्त कर लेती है। इस मोक्षरूप फल और पद के निरूपण के फलस्वरूप में भी कर्मक्षय करके मोक्ष को प्राप्त करूँ तथा अन्य सभी जीव भी मोक्ष फल को प्राप्त करें ऐसी पवित्र शुभ भावना के साथ विरमता हूँ । “सिद्धाः सिद्धिं मम दिसंतु" ऐसे हे सिद्ध भगवंतो ! मुझे भी सिद्धि गति–मोक्ष का दर्शन कराओ। मुझे दिखाओ । मेरे ध्येय में लाओ। बस, इसी प्रार्थना के साथ विराम ।..... . * * * * * • विकास यात्रा का अन्त- प्रस्तुत पुस्तक “आध्यात्मिक विकास यात्रा” में निगोद की सूक्ष्मावस्था से लेकर मुक्ति की अवस्था तक का विवेचन किया है । संसार में आत्मा की उत्पत्ति तो होती ही नहीं है। यह अनुत्पन्न द्रव्य है। और जो उत्पन्नशील ही नहीं है वह विनाशस्वभावी भी नहीं है। इसीलिए मोक्षावस्था में अनन्तकाल तक अपना स्वतंत्र अस्तित्व सदा बनाए रखती है। अतः जैसे अन्तिम सिद्धावस्था में अनन्तकालीन अस्तित्व है ठीक वैसे ही पूर्वावस्था या प्राथमिकावस्था में निगोद में भी अनन्तकालीन अस्तित्व है ही। निगोद यह जीवों की खान है। लेकिन निगोद में जीवों की उत्पत्ति नहीं होती है। वहाँ गोलों में अस्तित्व-विद्यमानता अनन्तकालीन है । अतः निगोद में उत्पत्ति नहीं अस्तित्व है । लेकिन जब निगोद की सूक्ष्मतमावस्था से बादर-स्थूलावस्था में जब जीव एक कदम आगे बढता है तब जीव की उत्पत्ति कही जाती है। यह व्यवहार नय से कहा जाता है। यद्यपि स्थूलावस्था भी है तो निगोद की ही अवस्था । मात्र सूक्ष्मतमावस्था से स्थूलावस्था होना यह संसार का प्रथम जन्म । यहाँ से व्यवहार में आने रूप उत्पत्ति गिनी जाती है। मानी जाती है । बस, विकास के प्रारम्भ का यही केन्द्र बिन्दु है। इस स्थूलावस्थारूप निगोद में- अंकुरे, लील फूग; फंगस (फूलन) किसलय-कोमल पत्ते, और निर्बीज फल की आद्यावस्था, आलु, प्याज, लहसून, अदरक, गाजर, मूला, शकरकंद ऐसे जमीकन्द आदि संसार के व्यवहार में आनेरूप विकासयात्रा के प्रथम सोपानस्वरूप हैं । यहाँ से शुरुआत १४८४ आध्यात्मिक विकास यात्रा

Loading...

Page Navigation
1 ... 526 527 528 529 530 531 532 533 534