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सवाल ही नहीं रहता है । अतः कभी भी कोई भी जीव यहाँ आए, जन्म धारण करे और कर्मक्षय करके मोक्ष पधारे । ऐसी क्षेत्र–कालिक व्यवस्थावाले महाविदेह क्षेत्र की प्राप्ति की सतत अभिलाषा रखनी चाहिए । वर्तमान की दृष्टि से सिद्ध होने के लिए कोई लौकिक काल ही नहीं है एक समय में ही सिद्ध बन सके जिससे कि।
३) गति द्वार- संसार के समस्त अनन्त ही जीव देव, मनुष्य, नरक और तिर्यंच की ४ गतियों में रहते हैं। मोक्ष में जाने हेतु इन ४ गतियों में से किस गति की अनुकूलता-योग्यता रहती है? यह भी विचारणीय है। देव, नरक और तिर्यंच इन ३ गतियों का तो सर्वथा निषेध ही करते हैं शास्त्रकार । अतः इतने बड़े ७ राजलोक जितने विशाल देवलोक के ऊर्ध्व क्षेत्र के चारों निकाय के देवता जो कि असंख्य की संख्या में हैं उनके लिए मोक्ष इसी देवजन्म से प्राप्त करना संभव ही नहीं है । अतः अनन्त काल में भी कोई देवता मोक्ष में नहीं गया। ठीक इसी तरह नरक गति के नारकी जीव कभी भी मोक्ष में नहीं जाते हैं । तथा इसी तरह तिर्यंच गति के पशुपक्षी भी कभी भी मोक्ष में जा ही नहीं सकते हैं। अनन्त काल में अनन्त जीवों में से एक भी देव, नारकी और तिर्यंच पशु-पक्षी मोक्ष में गए भी नहीं हैं और भविष्य में कभी भी मोक्ष में नहीं जाएंगे।
___ अब रही बात सिर्फ मनुष्य गति के मनुष्यों की । सिर्फ एक मात्र मनुष्य ही मोक्ष में जाने के योग्य है । लेकिन ऐसा भी मत समझिए कि... कोई भी मनुष्य मोक्ष में जा सकता है। जी नहीं । जैसा कि पहले वर्णन कर चुके हैं कि.... ३०३ प्रकार के समस्त मनुष्य गति के मनुष्यों में से १०१ प्रकार के संमूर्छिम मनुष्य कदापि मोक्ष में जाने योग्य हैं ही नहीं। दूसरे १०१ प्रकार जो गर्भज अपर्याप्त मनुष्य हैं उनमें से भी कोई मोक्ष में कदापि जा ही नहीं सकता। ये दोनों अन्तर्मुहूर्त परिमित आयुष्यवाले ही हैं । अतः सवाल ही नहीं होता। ये सर्वथा मोक्ष के लिए अयोग्य हैं। अब रही बात १०१ गर्भज पर्याप्त संज्ञि पंचेन्द्रिय मनुष्यों की। इनमें १५ कर्मभूमिज, ३० अकर्मभूमिज और ५६ अंतीपज मिलाकर १०१ बनते हैं । अब पहले भी जैसा कि आप पढ आए हो उनमें ३० अकर्मभूमिज
और ८६ अंतर्द्विपज मिलाकर कुल ८६ प्रकार के मनुष्य तो कदापि मोक्ष पा ही नहीं सकते हैं । क्योंकि ये ८६ प्रकार के मनुष्य जहाँ जिस क्षेत्र (भूमि विशेष) में रहते हैं, जन्मते हैं वहाँ भगवान, गुरु और धर्मादि की अनुकूल-सहयोगी सामग्री कुछ भी नहीं है । क्योंकि ये सब एक मात्र १५ कर्मभूमियों में ही उपलब्ध है । अतः सिर्फ १५ कर्मभूमिज मनुष्य ही मोक्ष पाने की योग्यता रखते हैं। अब आप ही सोचिए कि ३०३ प्रकार के मनुष्यगति के सभी मनुष्यों में से सिर्फ १५ प्रकार के मनुष्य ही मोक्ष पाने के योग्य हैं।
विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति"
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