Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 479
________________ १०) अंतर द्वार- एक के मोक्ष में जाने के बाद कम से कम और अधिक से अधिक कितना अन्तर पड सकता है । इस विषय की विचारणा इस १० वे अन्तर द्वार में की गई है। क्या प्रति समय सिद्ध होते ही रहते हैं ? या बीच में अन्तर भी होता है या नहीं? इस विषय में कहते हैं कि एक बार आँख बन्द होती-खुलती है पलक झपकती है उतने में तो असंख्य समय बीत जाते हैं। तो क्या उन असंख्य समयों में प्रति समय निरंतर सिद्ध होते रहते हैं ? या अन्तर भी पडता है? क्या कुछ समय खाली भी जाता है? अतः अन्तर की दृष्टि से २ प्रकार से विचारणा होती है । १) निरंतर और २) सान्तर । १) निरन्तर में सतत अखण्ड रूप से प्रति समय सिद्ध होते ही रहते हैं । उसमें जघन्य (कम से कम) से २ समय तक निरंतर सिद्ध होते रहते हैं। और उत्कृष्ट से ८ समय तक सिद्ध होते रहते हैं । अर्थात् पहले समय में कोई सिद्ध बनकर, फिर दूसरे समय में भी कोई सिद्ध हो, फिर ३ रे फिर ४,५,६,७ और ८ वे समय में भी कोई सिद्ध बनते ही जाय, कहीं बीच में खण्ड ही न पडे उसे अखण्ड रूप से सिद्ध होना कहते हैं । बिना अन्तर पडे अर्थात् निरन्तर जो सिद्ध होते हैं वे जघन्य-उत्कृष्ट रूप से २ से ८ समय तक सिद्ध होते रहते हैं। इसमें भी निरंतर ८ समय तक सिद्ध होते ही रहे हो उनकी संख्या काफी कम है। जबकि इन से ७ समय तक सिद्ध हुए संख्यात गुने ज्यादा हैं । इनसे भी ६ समय तक के निरंतर सिद्ध संख्यात गुने ज्यादा हैं । इस तरह ५ समय तक ४, ३, २ और १ समय में सिद्ध होते ही रहनेवालों की संख्या क्रमशः संख्यात गुनी ज्यादा ज्यादा है। इसमें सिर्फ अन्तर का विचार किया जा रहा है, लेकिन संख्या का विचार नहीं है। किस समय में कितनी संख्या में मोक्ष में गए या जाते हैं, यह विचार संख्या द्वार में करेंगे। ५अब दसरी दृष्टि सांतर की है । अर्थात् १ किसी के सिद्ध हो जाने के पश्चात् दूसरा कोई सिद्ध हो उसके बीच में यदि अन्तर पडे तो कितना पडे ? कम से कम कितना पडे? और ज्यादा से ज्यादा कितना अन्तर पड़ सकता है? इस विषय में कहते हैं कि सतत निरंतर ८ समय तक सिद्ध होते ही रहें.... तो उसके पश्चात् नौंवे समय कोई भी सिद्ध नहीं होते हैं । नौंवे समय से अन्तर पड जाता है । बस, अब समस्त मनुष्य क्षेत्र में से नौंवे समय से कोई यदि मोक्ष में न जाय और अन्तर बीच में पड़ जाता है तो यह अन्तर १ समय का अन्तर कम से कम अर्थात् जघन्य से पड सकता है । अर्थात् नौंवे समय में कोई मोक्ष में न जाय और फिर १० वे समय में कोई भी मोक्ष में जा सकता है । इस तरह १ समय का अन्तर यह जघन्य कक्षा का अन्तर है। यदि यह बीच का अन्तर बढता ही जाय तो १०, ११, १२, १५, २० इस तरह १ महीना, २ महीना, ४ महीना और अन्त में उत्कृष्ट से विकास का अन्त “सिद्धत्व की प्राप्ति" १४३५

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