Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 506
________________ जिनेश्वर सर्वज्ञ परमात्मा के जैन शासन में जब भी कभी यह प्रश्न पूछा जाय कि कितने मोक्ष में गए हैं? तो उत्तर अनन्त काल तक एक ही रहेगा, और अनन्त काल के बाद भी एक ही उत्तर रहेगा कि... " एक निगोद का भी अनन्तवाँ भाग ही मोक्ष में गया है । इस तरह तीनों काल में सिद्धों की संख्या संसारी जीवों के सामने अनन्तवे भाग की ही रहेगी । इससे यह स्पष्ट होता है कि... संसार कभी भी खाली नहीं होगा । अनन्त काल के बाद भी एक दिन भी ऐसा नहीं आएगा कि जिस दिन ... संसार में से मोक्ष में जानेवाला अब कोई शेष बचा ही नहीं है । अब संसार का सर्वथा अन्त ही आ चुका है । अब कोई बचा ही नहीं है, सिर्फ मोक्ष ही है। या अब सिर्फ सिद्ध ही सिद्ध है । कोई संसारी जीव है ही नहीं । ऐसी बात भी नहीं है। अतः मोक्ष में जाने का सिलसिला अनन्तकाल तक चालू रहने के बाबजूद भी संसार में अनन्तानन्त जीव शेष रहेंगे ही। अतः इससे सिद्ध होता है कि संसार भी त्रैकालिक शाश्वत है और मोक्ष भी त्रैकालिक शाश्वत है। इसमें कभी भी सिद्धान्त हानी नहीं आएगी। इस तरह अनन्तानन्त गुने संसारी जीव और अनन्तवे भाग " ही सिद्ध जीव इस भाग द्वार से सिद्ध होते हैं । ८) भाव द्वार तेसिं दंसणं नाणं । खइए भावे परिणामिए अ पुण होइ जीवत्तं ।। ४९ ।। सिद्ध जीवों में ज्ञान और दर्शन क्षायिक भाव से होते हैं। तथा जीवत्व यह पारिणामिक भाव से होता है । भाव शब्द आत्मगुणवाचक है । सिद्ध बननेवाली आत्मा १३ वे गुणस्थान पर जो केवलज्ञान - केवल दर्शनादि प्राप्त करती है वह सब क्षायिक भाव की कक्षा के प्राप्त करती है । आप जानते ही हैं कि शास्त्रों में ५ प्रकार के भाव बताए गए हैं । १) औपशमिक, २) क्षायिक, ३) क्षायोपशमिक, ४) औदयिक, तथा ५) पारिणामिक | इन ५ प्रकार के भावों की कक्षा के ही ज्ञान- दर्शनादि गुण जीवों को प्राप्त होते हैं । इनमें सर्वश्रेष्ठ कक्षा का क्षायिक भाव है। ज्ञान दर्शनादि आत्मगुण एक बार क्षायिक भाव की कक्षा के प्राप्त हो जाय, तो वापिस चले नहीं जाते हैं । नष्ट नहीं होते हैं । क्षायिक में मूल शब्द 'क्षय' है । 'क्षय' शब्द नाश अर्थ में है । भाव वाचक बने हुए क्षायिक शब्द का अर्थ है सर्वथा कर्म का क्षय होने से । कृत्स्न कर्मक्षय का अर्थ है सर्वथा कर्म का क्षय होना । कृत्स्न कर्मक्षय कर्मों की संपूर्ण संख्या का सूचक है। सभी अर्थात् आठों कर्मों का क्षय I I १४६२ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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