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संभव हो सके । तथा वास्तविक सत्य भी यही है कि ईश्वर जब सृष्टि का कर्ता-हर्ता है ही नहीं तो फिर जबरदस्ती उस पर क्यों थोपा जाता है? बलात् आरोपण करके ईश्वर का स्वरूप बिगाडना यह उसकी उपासना-आराधना नहीं अपितु भर्त्सना-मजाक है । चरम सत्य तो यही है कि सृष्टि अनादि-अनन्त कालीन अस्तित्ववाली ही है। ___ अतः संसार में जीवों का अस्तित्व अनादि-अनन्त है। लेकिन मोक्ष में सादि-अनन्त स्थिति है सिद्ध की । जिस दिन जीव मोक्ष में गया वह सादि हुई । शुरुआत का काल है । अतः आदि सहित को सादि कहा है। और अब वहाँ से सदा के लिए वापिस कभी आना ही नहीं है अतः अनन्त है । यह एक जीव की दृष्टि से बात की है।
परन्तु यदि समस्त अनन्त सिद्धों की अपेक्षा से विचार करें तो इन अनन्त सिद्धों में से सबसे पहले कौन मोक्ष में गए? कब मोक्ष में गए? इस तरह इन अनन्त सिद्धों में से हम पहले की संख्या किसकी है यह ढूँढ ही नहीं पाएंगे और दूसरी तरफ सर्वप्रथम मोक्ष में जानेवाले का काल कैसे ढूँढ पाएंगे कि वे कब मोक्ष में गए? क्योंकि काल अनन्त बीता है । अनन्त काल से जीव मोक्ष में जाते ही रहे हैं । अतः अनन्त जीवों की अपेक्षा से अनादि-अनन्त कालस्थिति कहनी ही पडती है।
दूसरी तरफ संसारी भव्य जीवों की स्थिति अनादि-सान्त ही है। उत्पत्ति न होने के कारण जीव अनादि काल से संसार में है ही लेकिन कर्म का जो संबंध जीवों के साथ है वह अन्त (क्षय) होनेवाला होने के कारण सान्त ही है। अन्त होनेवाले या अन्त सहित को ही सान्त कहते हैं । जब भव्यात्माओं के सब कर्मों का क्षय ही हो जानेवाला है तो फिर मुक्ति ही होगी। मुक्ति की शुरुआत कहाँ से होती है ? सर्व कर्म क्षय से ही । अतः सर्व कर्म क्षय होते ही संसार का अन्त और मुक्ति का प्रारम्भ होता है। एक ही दिवाल दोनों तरफ हो तो एक तरफ से अन्त और दूसरी तरफ से शुरुआत होती है। वैसे ही यहाँ भी है। कर्म की बडी दिवाल के इस तरफ संसार है और उस तरफ कर्मरहित अवस्था में मोक्ष
बस, जिस दिन जीवात्मा इस कर्म की दिवाल का भेदन करके उस पार चली जाएगी उस दिन सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बन जाएगी । इस दिवाल के दोनों तरफ अर्थात् संसार में और मोक्ष में दोनों तरफ आत्मा तो वही है। सिर्फ २ पर्याय भेद ही हैं । परन्तु मूलभूत द्रव्य का भेद नहीं है । द्रव्य स्वरूप से आत्मा दोनों अवस्था में एक जैसी समान ही रहती है । कोई फरक ही नहीं है । बस,कर्म के कारण पर्याय में अन्तर जरूर पडा । जिस दिन कर्मावरणरूपी
विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति"
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