Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh
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किया गया है । उपरोक्त ११ ही द्वारों का जो विचार करके सबके सिद्ध होने की जो बात की गई है उन सबमें कम-ज्यादा संख्या का विचार करना वह अल्पबहुत्व द्वार में किया गया है । मनुष्य क्षेत्र में संहरण होकर सिद्ध होनेवालों की संख्या की अपेक्षा कर्मभूमि में ही जन्म लेकर मोक्ष में गए हुए की असंख्यात गुनी ज्यादा है । कालद्वार में उत्सर्पिणी काल में सिद्ध हुए जीवों की अपेक्षा अवसर्पिणीकालिक सिद्ध जीव विशेषाधिक है। इससे भी शाश्वत कालवाले चौथे आरेवाले क्षेत्र महाविदेह क्षेत्र में मोक्ष में जानेवाले जीवों की संख्या संख्यातगुनी ज्यादा ही रहती है। पृथ्वी क्षेत्र के २ ॥ द्वीपों में मोक्ष गए हुए जीवों में जंबुद्वीप की अपेक्षा घातकी खण्ड में से मोक्ष में गए हुए संख्यात गुने ज्यादा तथा इसकी अपेक्षा भी पुष्करार्ध द्वीप में से मोक्ष में गए हुए जीवों की संख्या संख्यात गुनी ज्यादा है । बात भी सही है, क्योंकि ... जंबुद्वीप में १ महाविदेह है, जबकि घातकी खण्ड में पूर्व-पश्चिम में दो-दो हैं । इसी तरह पुष्करार्ध द्वीप क्षेत्र में भी २ महाविदेह क्षेत्र है पूर्व-पश्चिम में और क्षेत्रफल में भी वे काफी ज्यादा कई गुने बडे लम्बे चौडे है । अतः वहाँ से ज्यादा से ज्यादा जीव मोक्ष में गए हैं, जाते हैं यह स्वाभाविक ही है । इसी तरह सभी द्वारों में अल्प - बहुत्व संख्या में कम ज्यादा का विचार किया गया है। गति की दृष्टि से तिर्यंच से मनुष्य की गति में आकर मोक्ष में जानेवालों की संख्या की अपेक्षा देवगति में से मनुष्य गति में आकर मोक्ष में गए हुए जीवों की संख्या संख्यात गुनी ज्यादा है।
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लिंग की दृष्टि से नपुंसक लिंग से सिद्ध होनेवालों की संख्या अत्यन्त कम है। उससे स्त्रीलिंग से सिद्ध बननेवालों की संख्या संख्यात गुनी ज्यादा है। और अन्त में पुरुषलिंग से सिद्ध बननेवालों की संख्या इससे भी संख्यात गुनी ज्यादा है । अतीर्थ सिद्ध अल्प है जबकि तीर्थ सिद्ध असंख्यगुने ज्यादा हैं ।
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प्रत्येक बुद्ध सिद्ध काफी कम है इनसे बुद्ध बोधित की संख्या संख्यात गुनी है । इनमें भी क्रमशः नपुंसक से स्त्रीलिंगी की ज्यादा और उनसे भी पुरुषलिंगी की सबसे ज्यादा है । इस तरह बारहों द्वारों में अल्प बहुत्व द्वार की दृष्टि से कम-ज्यादा की संख्या का विचार किया गया है ।
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मोक्ष में जानेवालों को यहीं से सब साथ लेकर जाना पड़ता है
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जैसे यहाँ कोई देशान्तर जाते हैं तो भाता आदि सब साथ ले जाते हैं । कन्या पतिघर जाती है तब दुनिया भर का सामानादि सब साथ लेकर जाती है । ठीक उसी तरह मोक्ष में कोई भी कहाँ से जाएगा ? आखिर संसार में से ही कोई सिद्ध होता है । मोक्ष में क्या
विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति ”
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