Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 495
________________ ६ प्रदेश और जिसपर रहा है वह १ ऐसे ७ आकाश प्रदेशों का स्पर्श कहलाता है । इसी तरह प्रत्येक सिद्ध भगवंत का अवगाहना क्षेत्र से स्पर्शना क्षेत्र अधिक होता है । न केवल सिद्ध को ही अपितु... परमाणु आदि सभी द्रव्य मात्र के लिए स्पर्शना क्षेत्र अधिक ही होता है । इसी तरह सिद्धों भगवंतों के भी स्पर्शना क्षेत्र चारों तरफ से समझना चाहिए। दूसरी तरफ... एक सिद्धात्मा का दूसरे सिद्ध जीव की भी स्पर्शना अधिक होती है। एक विवक्षित सिद्ध जिन आकाश प्रदेशों की अवगाहना करके रहे हुए है वह भी अधिक है । और दूसरी तरफ... एक सिद्ध भगवान् जिन आकाश प्रदेशों की अवगाहना करके रहे हुए हैं उन प्रत्येक आकाश प्रदेश के एक-एक आकाश प्रदेश की हानि-वृद्धि अनन्त दूसरे सिद्ध भी अवगाहकर रहे हुए हैं। इस तरह अनन्त सिद्ध जीव या एक सिद्ध जीव अन्य अनन्त सिद्ध जीवों को आक्रमित करके रहे हुए हैं। उन्हें विषमावगाही सिद्ध कहते हैं। और उन १ सिद्ध की अवगाहना में उन और उतने ही आकाशप्रदेशों की में संपूर्ण अन्यूनातिरिक्त अर्थात् हीनाधिकता रहित दूसरे अनन्त सिद्ध जीवों उस सिद्धात्मा को संपूर्ण आक्रमित करके स्पर्श करके अर्थात् अवगाहित करके रहे हुए होते हैं उसे “समावगाही' सिद्ध कहते हैं। ऐसे एक सिद्ध भगवान को समावगाही सिद्धों की स्पर्शना अनन्त गुनी है, और विषमावगाही सिद्धों की स्पर्शना उससे भी असंख्य गुनी है। क्योंकि अवगाहना के प्रदेश असंख्य होते हैं । इस तरह परस्पर स्पर्शना अधिक है । अनन्तगुनी है। इस तरह दोनों तरीकों से स्पर्शना द्वार कहा है। काल द्वार-काल संसार में अनादि-अनन्त है । अनादि का अर्थ है जिसकी कभी आदि-शुरुआत (प्रारंभ) हुआ ही नहीं है । और अन्त ही नहीं होता है उसे अनन्त कहते हैं। अत धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय तथा पुद्गलास्तिकाय ये पाँचों अस्तिकायवाले पंचास्तिकाय पदार्थ एवं काल सहित षड् द्रव्य सभी अनादि-अनन्त कालीन द्रव्य हैं अतः इनकी न तो आदि-शुरुआत है और न ही कभी इनका अन्त है। इस तरह समस्त संसार, ब्रह्माण्ड यह सारा लोक–अलोक सभी अनादि-अनन्त है। संसार में जीवों का अस्तित्व भी अनादि-अनन्त है । क्यों कि उत्पत्ति-नाश रहित ऐसे आत्म द्रव्य का अस्तित्व सदा अनादि-अनन्त कालीन ही रहता है। संसार तो जीवों की खान है। लेकिन मोक्ष में जीवों का विचार काल की दृष्टि से २ प्रकार से किया जाता है । १ एक तो एक जीव आश्रित काल, और दूसरा सर्वसिद्ध आश्रित कालं । १ जीव के बारे में विचार करने पर यह स्पष्ट होता है कि- एक जीव कब मोक्ष में गया? जब वह जीव धर्म विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति" १४५१

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