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वह ५ वे आरे में मोक्ष में जा सकता हैं । लेकिन ५ वे आरे में जन्मा हुआ ५ वे आरे में मोक्ष में नहीं जाता है। ऐसा नियम काल आधारित है। अतः ५ वे और छठे आरे में मोक्षगमन सर्वथा वर्ण्य है। इस तरह १, २, ३,४,५,६ अवसर्पिणी काल के चौथे आरे में १००% मोक्षगमन होता है। और ३ रे आरे में शेष भाग में ही संभावना रहती है। क्योंकि १ ही तीर्थंकर अन्त में होते हैं अतः १०% मोक्षगमन संभव है । अतः चौथे आरे में जन्मे हुए में से तो सिर्फ १%-२% ५ वे आरे में मोक्ष में जा सकते हैं । अतः १, २, ५, और ६ ये चार आरे तो मोक्षगमन के लिए सर्वथा निषिद्ध ही हो गए । अतः वह भी प्रश्न ही नहीं रहता है।
आज वर्तमानकाल में अवसर्पिणी काल चल रहा है । इसका ५ वा आरा चल रहा है । भ० महावीर के निर्वाण के ३ वर्ष और ८ मास के पश्चात् ५ वा आरा शुरु हो चुका . था। जिसको आज लगभग २५२२ वर्ष बीत चुके हैं । अतः आज कोई कहे कि- मैं मोक्ष में जा सकता हूँ, तो यह कथन सर्वथा असत्य सिद्ध होता है । इसलिए शास्त्रीय तत्त्वों को सापेक्षित भावों से जान लेने से ऐसे निरर्थक मिथ्याभिमानों से बचा जा सकता है । और यदि कोई इसी प्रकार का कथन करता भी रहता हो तो निश्चित समझिए कि वह शास्त्रीय सिद्धान्तों को न जाननेवालों का बकवास मात्र है । अतः जी हाँ, .... आज के इस हुंडा अवसर्पिणी काल के ५ वे आरे में मोक्षगमन यहाँ से सीधा संभव ही नहीं है । लेकिन वाया महाविदेह से जा सकते हैं । अर्थात् यहाँ का आयुष्य पूर्ण करके.... अगला जन्म महाविदेह क्षेत्र में लेकर वहाँ से मोक्ष में जा सकते हैं। ___ठीक ऐसी ही व्यवस्था उत्सर्पिणी काल में भी है । उसमें भी ६ आरों में ६, ५, ४, ३, २,१ छट्टे तथा पाँचवे में तो सर्वथा संभावना ही नहीं है । अतः सर्वथा निषिद्ध ही है। ४ थे आरे में १ से २३ तीर्थंकर होंगे, अतः इस काल में अवश्य ही मोक्षगमन १००% होगा। तथा अंतिम तीर्थंकर तीसरे आरे के प्रारम्भ में होंगे। अतः उनके जीवन काल में तथा उनके पश्चात् के भी शासन काल में ३ रे आरे में मोक्षगमन रहेगा। लेकिन ३ रा आरा पूरा संभव नहीं है। इस तरह तीसरे आरे में सिर्फ १०% मोक्षगमन रहेगा। बस, बाद में शेष तीसरे आरे में, दूसरे और १ ले आरे में भी मोक्षगमन सर्वथा वर्षी रहता है । इस तरह १० कोडाकोडी सागरोपम उत्सर्पिणी के तथा + १० कोडा कोडी सागरोपम अवसर्पिणी के इस तरह कुल मिलाकर एक पूरे कालचक्र के ३० कोडा कोडी सागरोपम में सिर्फ २ से २ ॥ कोडा कोडी सागरोपम जितना काल ही मोक्षगमन योग्य काल उपलब्ध रहता है। शेष समस्त काल मोक्ष में जाने के लिए प्रतिकूल ही है । सर्वथा निषिद्ध ही है।
विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति"
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