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सिद्धशिला है । यह भी ४५ लाख योजन विस्तारवाली है । मनुष्य क्षेत्र के मापवाली ही है । अतः मनुष्य ४५ लाख योजन विस्तारवाले अढाई द्वीप के किसी भी भाग में से मोक्ष
जा सकता है ।
यह सिद्धशिला बराबर मध्य भाग में ८ योजन जाडी मोटी है । मध्यभाग से फिर दोनों चारों तरफ जाने पर क्रमशः मोटाई - जाडाई घटती जाती है । और घटते-घटते इतनी ज्यादा घटती जाती है कि मक्खी के पंख जैसी पतली बन जाती है किनारे के भाग पर । बस, इसी कारण दूज के चन्द्रमा की तरह इसके आकार को उपमा दी जाती है। इस सिद्धशिला की पृथ्वी का नाम “ ईषत्प्राग्भारा " है ।
सर्व कर्मक्षय
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“कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः” तत्त्वार्थ सूत्र में मोक्ष सूचक इस सूत्र में “कृत्स्न” शब्द सर्व कर्मों का संपूर्ण-सर्वथा क्षय का सूचक है । व्याख्यान में “आत्यंतिक” क्षय करने के अर्थ है । अंशमात्र भी कर्म शेष न रहे तभी मोक्ष होता है, अन्यथा नहीं । मोक्ष शब्द जो दो अक्षरों का बना हुआ है, इन दोनों अक्षरों को अलग-अलग स्वतंत्र करके एक-एक अक्षर का अर्थ निकाल कर देखेंगे तो यह 'मोक्ष' शब्द ही अपना स्वरूप स्पष्ट करता है। मो + क्ष = मोक्ष “मो” अक्षर मोहनीय कर्म का प्रथम अक्षर है— मोह का सूचक है । वाचक है । आठ कर्मों का मुख्य राजा ही मोहनीय कर्म है। शेष सभी कर्म इस मोह राजा के पीछे की सेना है । “क्ष” अक्षर क्षय का वाचक सूचक है । इस तरह दोनों अक्षर मिलकर बने हुए मोक्ष शब्द का स्पष्ट निर्देश ही यह है कि... मोहादि आठों कर्मों का सर्वथा क्षय करना है । इसलिए ‘कृत्स्न' शब्द प्रयोग से सूत्रकार महर्षी सर्वथा - सर्वांशिक - संपूर्ण अर्थ में कर्मों का क्षय करने का सूचन करते हैं। सूक्ष्मतम कार्मण वर्गणा के पुद्गल - परमाणु जो आत्मा के प्रदेशों पर अनन्तानन्त लगे हुए हैं उन सबका आत्यन्तिक क्षय नाश होता है । तभी मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है । १४ वे गुणस्थान अयोगी केवली पर .... . केवलज्ञानी सर्वज्ञ प्रभु सर्व कर्मों का सर्वथा क्षय करके मुक्त होते हैं। योग निरोध के कर्मों का सर्वथा क्षय करके मुक्त होते हैं। योग निरोध के पश्चात् शैलेशीकरण करके सदा के लिए मुक्ति धाम में पहुँच जाते हैं ।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा