Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 459
________________ में खडा ऐसी अन्तिम स्थिति जैसी हालत देखकर करकंड.... एक टसी नजर से बस, देखते ही रह गए...चिन्तन की धारा खुल गई । काफी चिन्तन करने से सत्य तत्त्व समझ में आ गया। यह संसार कैसा है यह ज्ञान हुआ और अपनी आत्मा को भी पहचान सके। बस, आत्मज्ञान होते ही बैल के निमित्त को पाकर... करकंडु उसी समय संसार का सारा वैभव छोडकर निकल गए .... और मुनिवेष ग्रहण करके चारित्र धर्म स्वीकार किया। दीक्षा ली । प्रत्येक बुद्ध को देवता भी आकर मुनि वेष अर्पण करते हैं । अब करकंडु मुनि तीव्र वैराग्यवासित मन से उत्कृष्ट कक्षा की दीक्षा-चारित्र धर्म का पालन करते हैं । लघु कर्मी आत्मा थी । अतः आर्त-रौद्र ध्यान, राग द्वेषादि का त्याग करके ७ वे गुणस्थान पर अप्रमत्त बने हुए रहते थे। ८ वे गुणस्थान पर आरूढ होकर क्षपक श्रेणि का श्रीगणेश किया। शुक्लध्यान की धारा में चढते हुए.... कर्मों की निर्जरा करते हुए वीतराग बनकर केवलज्ञान पाकर मोक्ष में गए। सदा के लिए संसार का, कर्मों का, शरीर का सारा साथ छोडकर मुक्त हो गए। इन्हें प्रत्येक बुद्ध की कक्षा के महात्मा कहते हैं। ऐसे संसार के सेंकडों निमित्त हैं जिनका निमित्त पाकर चिन्तन करते हुए वास्तविक गहराई को पाकर कोई भी मोक्ष में जा सकता है। १३) स्वयं संबुद्ध-बिना किसी गुण आदि के उपदेश के और बिना किसी निमित्त के जो वैराग्य वासित होकर दीक्षा ग्रहण करे वे स्वयंसंबुद्ध की कक्षा के महात्मा गिने जाते हैं। इस कक्षा के जीवों ने पूर्व जन्मों में ऊँची साधना की हई रहती है । इसके फल स्वरूप अन्तिम जन्म में कर्मों की निर्जरा होने से या वे कर्म क्षीण होने से आत्मा के गुण प्रगट हो जाते हैं । वे संसार छोडकर अपने आप स्वयं ही दीक्षा ले लेते हैं और ध्यानादि की साधना में चढते हुए गुणस्थान • के सोपानों पर आरूढ हो जाते हैं । क्षपकश्रेणी शुरु कर देते हैं । इसके कर्मों का आक्रमण-प्रतिकार बहुत कम रहता है .... और दूसरी तरफ श्रेणी क्षपक की रहती है । इसलिए केवलज्ञान भी शीघ्र ही पाकर सदा के लिए संसार शरीर आदि से मुक्ति पा लेते हैं। ___ शास्त्रों में दृष्टान्त कपिल केवली का देते हैं । (दृष्टान्त पहले दिया है) ब्राह्मण के घर का लडका कपिल पिता की मृत्यु के पश्चात् बाल्य वय में ही अध्ययन करने बनारस गए। गुरु पढाते थे, और एक शेठ भोजन कराते थे। इतने में शेठ के घर की नोकरानी की लडकी के प्रेम में यह कपिल फस गया। इसमें तो काफी आगे बढ गया। अब राजा को प्रभात विकास का अन्त “सिद्धत्व की प्राप्ति" १४१५

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