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समझा जा सके । इस १४ राज लोक में ३ लोक हैं । १) देवलोक २) नरकलोक, तथा ३) तिर्छा लोक । १) देवलोक में से कदापि कोई देव कभी मोक्ष में नहीं जाता है । तथा ७ नरक के नरकलोक में से भी कभी भी कोई नारकी भी मोक्ष में नहीं जाते हैं । अब रही बात तिर्छा लोक या मनुष्य लोक की । तिर्छालोक में असंख्य तिर्यंच - पशु-पक्षी रहते हैं । वे भी कभी भी मोक्ष में जाते ही नहीं हैं । इस तरह देव, नारकी और तिर्यंच गति के - ३ गत के जीव तो तीनों काल में कभी भी मोक्ष में जाते ही नहीं है । अब रही बात मनुष्य गति की । मनुष्य गति में मनुष्यों के लिए २ ॥ द्वीप समुद्रों का ४५ लाख योजन का क्षेत्र है । जो इस प्रकार है—
लोकाग्र
४५ लाख योजन विस्तारवाला अढाई द्वीप मनुष्य क्षेत्र
विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति”
लोकान्त
सिद्धशीला
४५ लाख
योजन
प्रमाण
१३८१